कविराज विजय यशवंत सातपुते
(समाज , संस्कृति, साहित्य में ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले कविराज विजय यशवंत सातपुते जी की सोशल मीडिया की टेगलाइन “माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कामगारों के जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता “अबोल मैत्री ” )
☆ विजय साहित्य – अबोल मैत्री ☆
अबोल मैत्री सांगून जाते
शब्दांच्याही पलीकडले.
नजरेमधुनी कळते भाषा
कसे जीवावर जीव जडले
अबोल मैत्री अनुभव लेणे
माणूस माणूस वाचत जाणे
स्नेहमिलनी स्वभावदोषी
दृढ मैत्रीचे वाजे नाणे.. . !
अबोल मैत्री नाही कौतुक
शिकवून जाते धडा नवा
कसे जगावे जीवनात या
या मैत्रीचा नाद हवा.. !
अबोल मैत्री आहे कविता
संवादातून कळलेली
अंतरातली ओढ मनीची
अंतराकडे वळलेली.. !
अबोल मैत्री म्हणजे जाणिव
परस्परांना झालेली
तू माझा नी मीच तुझा रे
मने मनाला कळलेली.. . !
© विजय यशवंत सातपुते
यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी, सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.
मोबाईल 9371319798.
सुंदर रचना