मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना
श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को उनके साप्ताहिक स्तम्भ रंजना जी यांचे साहित्य के अंतर्गत पढ़ सकते हैं । आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता ” सलोखा”।)
☆ सलोखा ☆
अगणित जाती धर्म
देश संपन्न अनोखा।
घडी सत्वपरीक्षेची
परि जपतो सलोखा।
जगी तांडव मृत्यूचे।
मती खुंटली जगाची।
पुत्र चाणाक्ष निर्धारी
पाठीराखे शतकोटी।
अभावात दावी प्रभा
स्वयंसिद्ध वैद्यराज।
फास रोखती मृत्यूचे
थक्क होई यमराज।
व्रत निस्पृह सेवेचे
असे परीचारिकेचे।
सेवा सुश्रृषा करून
बंध बांधी एकतेचे।
खाक्या खाकीचा दावितो
अहर्निश सेवादारी ।
दीन दुःखीतांचे अश्रू
पुसतसे शस्त्रधारी।
असा अनोखा सलोखा
उभ्या जगी ना मिळेल ।
कोरोनाचा विळखाही
प्रेमा पाहून गळेल।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105