कवी राज शास्त्री
(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 3 ☆
☆ वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे… ☆
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
नारे फक्त लावल्या गेले
वन मात्र उद्वस्त झाले..०१
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे…
अभंग सुरेख रचला
आशय भंग झाला..०२
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
झाडांबद्दलची माया
शब्द गेले वाया..०३
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
वड चिंच आंबा जांभूळ
झाडे तुटली, तुटले पिंपळ..०४
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
संत तुकारामांची रचना
सहज पहा व्यक्त भावना..०५
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
तरी झाडांची तोड झाली
अति प्रगती, होत गेली..०६
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
निसर्ग वक्रदृष्टी पडली
पाणवठे लीलया सुकली..०७
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
पाट्या रंगवल्या गेल्या
कार्यक्रमात वापरल्या..०८
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
वृक्षारोपण झाले
रोपटे तडफडून सुकले.. ०९
वृक्षवल्ली आम्हां सोयरे
सांगणे इतुकेच आता
कोपली धरणीमाता..१०
© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.
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