कविराज विजय यशवंत सातपुते
(समाज , संस्कृति, साहित्य में ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले कविराज विजय यशवंत सातपुते जी की सोशल मीडिया की टेगलाइन “माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक वात्सल्यमयी रचना ‘जाण’। यह सत्य है कि हम सब पैसों के लिए भागते हैं। जीवन में कई क्षण आते हैं, जब लगता है कि पैसा ही बहुत कुछ होता है । किन्तु, फिर एक क्षण ऐसा भी आता है जब लगता है कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य ☆
☆ जाण ☆
( करूण रस )
गेला लेक
दूर देशी
माऊलीचे
चित्त नेशी…….१
लागे मनी
हूर हूर
आठवांना
येई पूर…..२
एकुलता
लेक गेला
जीव झाला
हळवेला……३
पैशासाठी
गेला दूर
घरदार
चिंतातूर ….४
नाही वार्ता
नाही पत्र
अंतरात
चिंता सत्र…..५
एकलीच
वाट पाही
झाला देह
भार वाही…..६
कोणे दिनी
पत्र आले
खूप सारे
पैसे दिले…….७
हवा होता
त्याचा वेळ
लेकराने
केला खेळ……८
नाही तुला
काही कमी
देतो पैसे
दिली हमी ……९
वात्सल्याची
नाही जाण
माऊलीचा
गेला प्राण……१०
© विजय यशवंत सातपुते
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