सौ. वृंदा गंभीर
कवितेचा उत्सव
☆ श्रीकृष्ण मुरारी… ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆
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श्रीकृष्ण मुरारी | नंदाच नंदन |
ललाटी चंदन | टिळा असे ||1||
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गोपिकांचा कान्हा | सावळा श्रीहरी |
वाजवी बासरी | वनराई ||2||
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राधेचा मुरारी | खोड्या करी भारी |
राधा ही बावरी | मनामध्ये ||3||
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यशोदेचा लाल | उखळी बांधला |
जीव हा कोंडला | गवळणींचा ||4||
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सुदामाचा सखा | वासुदेव पुत्र |
जिवेभावे मित्र | ओळखला ||5||
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कंसाचा संहारी | हा कर्दन काळ |
देवकीचा बाळ | झाला असे ||6||
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बारागवे अग्नी | प्याला असे कृष्ण |
मुक्त केले वन | मथुरेत ||7||
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वृंदा म्हणे कान्हा | माझा नटखट |
वाट दावी नीट | जीवनाची ||8||
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धरावा विश्वास | असावा मानस |
जाईल मोक्षास | मनुष्यही ||9||
– दत्तकन्या
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© सौ. वृंदा गंभीर
न-हे, पुणे. – मो न. 8799843148
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈