कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी)  मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण अभंग  “बावरे मन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 16 ☆ 

☆ अभंग… बावरे मन ☆

 

बावरे मन हो

भक्तीत गुंतेना

तेढा हा सुटेना, काहि केल्या…०१

 

अवखळ भारी

मनाची तयारी

घेतो हा भरारी, अकल्पित…०२

 

चांगले करेना

सत्य ही बोलेना

गाठ उकलेना, मनाची हो…०३

 

भजन करता

चिंतन करावे

स्मरण साधावे, सदोदित…०४

 

याच्या विपरीत

मनाचा विचार

झाला भूमीभार, सहजची…०५

 

कवी राज म्हणे

मन शुद्ध व्हावे

योग्य तेच द्यावे, इतरांना…०६

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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