श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! क्या वास्तव में व्याकरण, शब्द, विराम चिन्हों की तरह ही होते हैं मनुष्य? यह प्रयोग निश्चित ही अद्भुत है. इस कविता माणसं…. के लिए पुनः श्री सुजित कदम जी को बधाई. )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #18☆
☆ माणसं…. ☆
कधी काना,
कधी मात्रा.. .
कधी उकार ,
कधी वेलांटी.. .
कधी अनुस्वार ,
कधी स्वल्पविराम.. .
कधी अर्ध विराम,
कधी विसर्ग.. .
कधी उद्गगारवाचक,
तर कधी पुर्णविराम.. .
अक्षरांना ही भेटतात,
अशीच.. . .
काहीशी माणसं..!
© सुजित कदम, पुणे
मो.7276282626