मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 27 – ईश स्तवन ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  ईश्वर की स्तुति  स्वरुप  भजन/कविता   “ईश स्तवन” । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 27 ☆ 

 ☆ ईश स्तवन

 

नित्य मागतो मी दाता, शुध्द राहो तन मन।

द्वैत बुद्धी त्यागुनिया स्थिर व्हावे अंतःकरण ।।धृ।।

 

मना मनांच्या तारांचे, यावे प्रेमळ झंकार।

खुंट्या भेदाच्या आवळी, ऐक्य गीत आविष्कार ।

स्वार्थ त्यागुनिया लाभो सम बुद्धी अधिष्ठान न।।१।।

 

नको लालसा नि धन शमवावी चित्तवृत्ती।

श्रमाप्रती राहो प्रीती, हीच ऐश्वर्य संपत्ती।

साद ऐकुनिया धावे, ऐसे देई प्रिय जन।।२।।

 

देव, देश, धर्मा प्रती, मनी वाढवावी गोडी।

साधुसंत संतीला,  आणि सज्जनांची जोडी।

वैऱ्याचेही  व्हावे मनी, मज अभिष्ट चिंतन।। ३।।

 

जीव जीवा लावणाऱ्या, सोबत्यांचा संगे मेळा।

बळ देतील लढण्या, सुख दुःखाच्याही वेळा।

होती आनंद सोहळा, असे स्वर्गीय जीवन।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105