मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 29 – विद्याधन ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है अतिसुन्दर  शिक्षाप्रद कविता   “विद्याधन ” । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 29 ☆ 

 ☆विद्याधन

 

जगी तरण्या साधन

असे एक विद्याधन।

कण कण जमवू या

अहंकार विसरून ।

 

सारे सोडून विकार

करू गुरूचा आदर।

सान थोर चराचर।

रूपं गुरूचे सादर ।

 

चिकाटीने धावे गाडी

आळसाची कुरघोडी।

जरी जिभेवर गोडी।

बरी नसे मनी अढी।

 

घरू ज्ञानीयांचा संग

सारे होऊन निःसंग।

दंग चिंतन मननी

भरू जीवनात रंग ।

 

ग्रंथ भांडार आपार

लुटू ज्ञानाचे कोठार।

चर्चा संवाद घडता

येई विचारांना धार।

 

वृद्धी होईल वाटता

अशी ज्ञानाची शिदोरी।

नका लपवू हो  विद्या

वृत्ती असे ही अघोरी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105