मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 32 – भृण हत्या ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  सामजिक व्यवस्था को झकझोरती हुई एक कविता  “भृण हत्या” । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 32 ☆ 

 ☆ भृण हत्या

 

करा विचार जरासा

नका होऊ अविचारी।

पुत्र मोहापाई  का हो

भृणहत्या ही उदरी।

 

आजी आत्या मामी काकी

आई ताई मावळण।

रुपे नारीची अनेक

करी प्रेम उधळण।

 

वंश वेल वाढवीन

उद्धरीन दोन्ही कुळे ।

तरी का हो आई बाबा

खिन्न होता  माझ्यामुळे।

 

तुझ्या हाती सोपविली

माझ्या श्वासाची ही दोरं

नको फिरवू ग सुरी

होई घायाळ ही पोरं

 

मुले जरी वंश दीप

मुली तरी कुठे कमी।

खुडू नको गर्भी कळी

फुलण्याची द्या ना हमी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105