श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “चार दिशेची चार पाखरे” । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 33 ☆
☆ चार दिशेची चार पाखरे ☆
सोडून कट्टी कर ना ग बट्टी, हट्ट सखे हा सोड ना।
प्रेमा मध्ये नको दुरावा, बरी नव्हे ही खोड ना।।धृ।।
चार दिशेची चार पाखरे, जमलो या काव्यांगणी।
सुखदुःखांच्या अनेक लहरी, मनास गेल्या छेडुनी।
क्षणात हसणे क्षणात रुसणे मैत्रीस या तोड ना।।१।।
ताई, माई, दादा, भाऊ, जमले सारे दोस्त ग।
काव्य मैफिली इथे रंगल्या अफलातून या मस्त ग।
चढाओढी अन् कुरघोडीची कधी न जमली जोड ना।।२।।
हाती हात नि पक्की साथ काव्य रसाची सारी रात।
भिन्न रंग- रूप धर्म जरी, मधे ना आली केव्हा जात।
असेल चुकला भाऊ अवखळ… अंतरंग परि गोड ना।।३।।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105