(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ “कवितेच्या प्रदेशात” में उनकी अतिसुन्दर “ग़ज़ल ”. सुश्री प्रभा जी की ग़ज़ल वास्तव में जीवन दर्शन है। यह तय है कि हम अकेले हैं और अकेले ही जायेंगे। यही जीवन है। इस सम्पूर्ण जीवन यात्रा का सार उनकी ग़ज़ल की अंतिम पंक्ति में समाया लगता है। यदि किसी को ईश्वर मन है तो उसे ईश्वर ही मानो क्योंकि वह पत्थर हो ही नहीं सकता। अर्थात यह विश्वास की पराकाष्ठा है। फिर इस जीवन यात्रा में एक स्त्री का जीवन तब भी परिवर्तित होता है जब वह अपना घर छोड़ कर नए घर को अपना घर बना लेती है। ऐसी परिकल्पना सुश्री प्रभा जी ही कर सकती हैं ।इस अतिसुन्दर गजल के लिए वे बधाई की पात्र हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 34 ☆
☆ गझल ☆
एकटी जाणार आहे,कोणता वावर नसो
तो जिव्हारी लागणारा, जीवघेणा स्वर नसो
तू दिलेले सर्व काही सोडुनी आले इथे
कोंडुनी जे मारते ते दुष्टसे सासर नसो
शांत वाटे या घडीला , मी इथे आनंदले
धूळ होणे ठरविले , ते देखणे अंबर नसो
मी कशी स्वप्ने उद्याची रंगवू वा-यावरी ?
वास्तवाचे प्रश्न मोठे त्या भले उत्तर नसो
ही कशाने तृप्तता आली मला या जीवनी
सुख असो वा दुःख आता त्यामधे अंतर नसो
कोणत्याही वादळाची शक्यता टाळू नको
जे मिळे ते युग सुखाचे त्यास मन्वंतर नसो
आपल्या ही आतला आवाज आहे सांगतो
देव ज्याला मानले तो नेमका पत्थर नसो
© प्रभा सोनवणे
“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011
मोबाईल-९२७०७२९५०३, email- [email protected]
धन्यवाद हेमंतजी! आपकी प्रस्तावना बहुत सुन्दर है ।