श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक सामयिक एवं भावपूर्ण कविता “पुन्हा एकदा फिरूनिया याल का हो राजे )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 36 ☆
☆ पुन्हा एकदा फिरूनिया याल का हो राजे ☆
हाल माझ्या देशाचे हे पाहाल का राजे।
पुन्हा एकदा फिरूनिया याल का हो राजे।।धृ।।
न्याय निती शिस्त सारी मोडीत निघाली।
गल्लोगल्ली लांडग्यांची झुंडशाही आली।
मोकाट या श्वापदांना थांबवा ना राजे।।१।।
परस्री मातेसम ही प्रथा बंद झाली।
रोज नव्या बालिकांची होळी सुरू झाली।
अभयचे दान आम्हा द्याल ना हो राजे।।२।।
मद्य धुंद दाणवांनी आळी माजली हो।
सत्ता पिपासूंनी त्यात पोळी भाजली हो।
घडी पुन्हा राज्याची या बसवा ना राजे।।३।।
जिजाऊंच्या गोष्टी आज विसरून गेल्या।
रोज नव्या मालिकात माताजी रंगल्या।
संस्कारांचे बाळकडू पाजाल का राजे ।।३।।
आवर्षण महापूर संकटांची माला।
सावकारी फासात या बळी अडकला।
फासातून मान त्याची सोडवा ना राजे।।४।।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105