सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी  एक अतिसुन्दर कविता  “*अनुभव*.  सुश्री प्रभा जी की  यह  कविता हमें स्त्री विमर्श से जोड़ती है। निःसंदेह प्रत्येक स्त्री पुरुष का स्वभाव उनकी वैचारिकता को दर्शाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को अपने तरीके से जीता है।  जैसे वह जीता है , वैसा ही उसका अनुभव होता है।  संभवतः इस कविता में कहीं न कहीं कवियित्री का अनुभव अपने आप लेखनी के माध्यम से  हृदय से कागज़ पर उतर आता है। इस अतिसुन्दर कविता के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 38 ☆

☆ अनुभव  ☆ 

 

आपण वेगळे आहोत इतरांपेक्षा,

हे जाणवले तिला—

त्या सा-याजणीं च्या

घोळक्यात!

 

नवीन  घरात रहायला गेल्यावर

समवयस्क बायकांशी

गप्पा मारायला गेली होती ती,

सोसायटीच्या बागेत!

 

उद्या वटपौर्णिमा आहे…

“कुठे जाणार वडाची पूजा करायला?”

“मी फांदी आणणार आहे.”

अशा  आणि या सारख्याच…

पारंपरिक वळणाच्या…..

गप्पा मधे ती नाही

रमत….

गेली कित्येक वर्षे!

त्या पेक्षा ऐकावी

एकांतात रफी ची जुनी गाणी

लता… आशा…गीता दत्त..

चे तलम रेशमी स्वर..

घ्यावेत लपेटून मनावर…

बाल्कनीत ल्या झोक्यावर बसून

वाचावी गौरी देशपांडे….

सानिया…

अंबिका सरकार…

ईरावती कर्वेंची जुनी संग्रहित

पुस्तके…पुनःपुन्हा!

 

एवढे संपन्न  अनुभव पाठीशी

असताना—

कुठल्याही पठडीत नाही बसवता येत स्वतःला!

आयुष्याची सांज कातर होते…

 

जे हवे  असते ते हरवत जाते….

इथे तिथे….

 

हा ही एक  अनुभवच ….

वेगळेपण जपण्याचा!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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Prabha Sonawane

धन्यवाद हेमंतजी