श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण  एवं संवेदनशील  कविता “आठवण ”। अक्सर जीवन के भागदौड़ में  कई बार हम किसी  कथन के पीछे छिपे एहसास को समझ नहीं पाते । किन्तु, यह कविता पढ़ कर आप निश्चित ही विचार करेंगे, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है ।) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #36☆ 

☆ आठवण ☆ 

माझी माय मला नेहमी

म्हणते की..

तू ना तुझ्या बा सारखाच दिसतोस

तोंड नाक डोळे सगळ कस …

बा सारखंच..,

बोलणं सुध्दा

मला प्रश्न पडतो…

मी खरच बा सारखा दिसतो

का मायेला बा ची आठवण येते..,

© सुजित कदम, पुणे

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