श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “पुन्हा नव्याने ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 42 ☆

☆ पुन्हा नव्याने  ☆

 

जगतो आहे मरण रोजचे

दुःख पाहुणे कुण्या गावचे

 

सरणालाही पैसा नाही

टाळूया का मरण आजचे ?

 

शीतल सरिता सोबत असता

वाळवंट हे तप्त काठचे

 

मुरू लागल्या कच्च्या कैऱ्या

जीवनानुभव हेच लोणचे

 

निसर्ग लाभो देहाला या

तक्के, गाद्या नको फोमचे

 

पुन्हा नव्याने दुःख भेटता

जीवन वाटे बरे कालचे

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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Prabha Sonawane

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