सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  मराठी कविता  “जीव ताटवा फुलांचा ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 30 ☆

☆ जीव ताटवा फुलांचा  ☆

कधी दूर

ताटवा फुलांचा,

माझ्या संगतीला येतो.

 

कधी दूर

ताटवा चांदण्यांचा,

राती संगतीला राहतो.

 

कधी रात

राहते संगतीस,

तव आठवांचा पूर येतो.

 

कधी आठवणींच्या

हिंदोळयावर सूर,

डोळ्यांतून येतो.

 

कधी सूर

आळवी- आर्जवी,

उर हळाळून येतो.

 

कधी जीव

आठवांच्या ताटव्यात,

चांदणेच होतो.

 

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

[email protected]

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