श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपकी एक अत्यंत शिक्षाप्रद एवं प्रेरक कविता ” वाचन संस्कृती”।  आज वास्तविकता यह है  कि वाचन संस्कृति रही ही नहीं । न पहले जैसे पुस्तकालय रहे  न पुस्तकें और न ही पढ़ने वाले।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 43 ☆

☆ वाचन संस्कृती ☆

 

वाचन संस्कृती । बाणा नित्य नेमे । आचरावी प्रेमे । जीवनात ।1।

 

संपन्न जीवना । ज्ञान एक धन । सुसंस्कृत मन । वाचनाने ।2।

 

शब्दांचे भांडार । समृद्धी अपार । चढतसे धार । बुद्धीलागी ।3।

 

मधुमक्षी परी । वेचा ज्ञान बिंदू । जीवनाचा सिंधू । होई पार ।4।

 

अज्ञान अंधारी । लावा ज्ञान ज्योती । वाचन संस्कृती । तरणोपाय ।5।

 

ज्ञानाची संपत्ती । लूटू वारेमाप । चातुर्य अमाप । गवसेल ।6।

 

वाचा आणि वाचा । ध्यानी ठेवा मंत्र । व्यासंगाचे तंत्र । फलदायी ।7।

 

जपा जिवापाड । वाचन संस्कृती । नुरेल विकृती । जीवनात ।8।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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