सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  परम आदरणीय पिताश्री को समर्पित एक भावप्रवण  “गझल”।  यह एक शाश्वत सत्य है कि बचपन से लेकर जीवनपर्यन्त माँ पिता को कैसे भूला जा सकता है। हमारी एक एक सांस उनकी ऋणी है। पितृ दिवस के अवसर वास्तव में यह गझल हमें उनकी एक एक बात स्मरण कराती है।  सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित  इस भावप्रवण रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 55 ☆

☆ पितृ दिवस विशेष – गझल ☆ 

 मला केवढी उदास करते गोष्ट वडिलांची

धुक्या सारखी मनी पसरते गोष्ट वडिलांची

 

जुनी खेळणी, डबा टिफिनचा बंब घंगाळे

किती कौतुके करीत बसते  गोष्ट वडिलांची

 

नवी बाहुली , कधी दुपारी डाव पत्त्यांचा

लपंडाव ते कसे विसरते गोष्ट वडिलांची

 

नसे आठवत जत्रा,सिनेमा,सर्कस ,बगीचा

पुन्हा केवढी उरात सलते गोष्ट वडिलांची

 

कधी एकटी स्मरणसिमेवर पाहते त्यांना

मुक्या पापणीतुन झरझरते   गोष्ट वडिलांची

 

कुणी दाखवा अता जुना तो काळ  सोनेरी

मनीमानसी सदैव वसते गोष्ट वडिलांची

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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Prabha Sonawane

धन्यवाद हेमंतजी, सुंदर प्रस्तावना ?

Shyam Khaparde

अच्छी रचना