मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? रंजना जी यांचे साहित्य #-5 – आयुष्य साधकाचे ? – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।   सुश्री रंजना  जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश  देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण रचना “आयुष्य साधकाचे”।)

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #-5 ? 

 

☆ आयुष्य साधकाचे ☆

 

वृत्त आनंदकंद

लगावली-  गागाल गालगागा गागाल गालगागा

 

आयुष्य साधकाचे भोगी जगून गेले।

साधुत्व मात्र त्यांचे पुरते मरून गेले।

 

लावून सापळ्याला कोणी हलाल केले।

हा खेळ मुखवट्यांचा खोटे तरून गेले।

 

लावून गोपिचंदन माळा गळ्यात शोभे।

फसवून ते जगाला साधू बनून गेले।

 

डोळे मिटून असती बगळे अखंड ध्यानी।

मत्स्यास का कळेना अलगद फसून गेले।

 

सोडून लाज सारी तत्वास मोडले पण।

शिरपेच  लाटताना डोके झुकून गेला।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105