श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  उनकी उनके भावप्रवण कविता   सावली।  यह कविता उनकी माँ  के प्रति  उनकी संवेदनाएं  व्यक्त करती है। निश्चित ही  यह कल्पनीय है  कि हम सब के जीवन में माँ  की छवि का क्या महत्व है और वह छवि सम्पूर्ण जीवन पर कैसे छाई रहती है। )

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 11 ? 

 

? सावली  ?

 

माय माऊली

माझी सावली।

सुख दुःखात

संगे धावली।

 

बालपणात

लहान झाली।

बोल बोबडे

बोलू लागली।

 

तारूण्यात ही

सखी साजणी।

प्रेम बेडीने

ठेवी बंधनी।

 

माया तोडुनी

धाडे सासरी।

छबी तिची ग

माझ्या अंतरी।

 

तोडली माया

जोडण्या नाती।

सासू सासरे

रूपं भोवती।

 

कधी पाठीशी

कधी सामोरी।

संकटी धीर

देतसे उरी।

 

साथ तुझी ग

पावला धीर।

भेटी साठी ग

मन अधीर ।

 

कालचक्राचे

रूपं भीषण।

लुप्त सावली

सोसेना ऊन।

 

तुटता छत्र

कैसी सावली।

तुझी छबी मी

लाख शोधली।

 

सुटला धीर

खचले पाय।

वाटे संगती

न्यावे तू माय।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

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