मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-16 – गारवा ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता – “गारवा”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 16 ☆
☆ गारवा ☆
बहरला निसर्ग हा मंद धुंद ही हवा।
तना मनास झोंबतो आसमंत गारवा। ।धृ।।
वृक्ष वल्ली उधळती गंध हा दश दिशा।
तारकाच उतरल्या शोभिवंत.. ही नीशा।
चंद्र जाणतो कला मनात प्रीत मारवा ।।१।।
स्वप्न रंगी हा असा मन मयूर नाचला ।
ह्रदय तार छेडताच प्रेमभाव जागला
धुंद मधुर नर्तना ताल पाहिजे नवा ।।२।।
तेज नभी दाटता तने मनात नाचली ।
कधी कशी कळेना भ्रमर मुक्ती जाहली ।
रुंजी घालतो मना भ्रमर हा हवा हवा ।।३।।
वेचते अखंड मी मुग्ध धुंद क्षणफुलां।
क्षणोक्षणी सांधल्या अतूट रम्य शृंखला।
अर्पिली अशी मने सौख्य लाभले जीवा ।।४।।
© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105