☆ पूरब और मक्का एक ही ओर है जहाँ से … ☆
(आज प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी की 12 किमी ऊंचाई से एक प्रायोगिक यात्रा संस्मरण जो आपको अपनी कई यात्राएं एवं उसके पीछे की स्मृतियाँ अवश्य याद दिला देगा। धरती से हजारों किमी ऊपर हवा में उड़ते हुए क्या आपको नहीं लगता कि आप एक वैश्विक ग्राम (Global Village) के सदस्य हो गए हैं?)
जमीन से कोई 12 किमी ऊपर, 800 करोड़ के यान में, एक बेड आपका हो, आप 12000 किमी की यात्रा पर कोई 1000 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से पहली बार सफर पर हों , तो मन पसन्द सुस्वादु खाते पीते , सारी यात्राये स्मरण हो आना स्वाभाविक ही है ।
वह पहली विमान यात्रा का पल पल याद आया जब हमें एम टेक करते हुए पहले सेमेस्टर के अंत मे पहली स्टाइपेंड मिली थी और मित्रों श्री प्रदीप व श्री सनत जैन के साथ इंडियन एयरलाइन के 14 सीटर सिंगल इंजिन हवाई जहाज से स्टूडेंट्स कनसेशन की शायद केवल 180 रु की टिकिट पर महज हवाई यात्रा करने के लिए भोपाल से इंदौर का जीवन का पहला हवाई सफर किया था ।
लंदन के पास समुद्र सतह से 12 कि मी ऊपर कही आसमान से न्यूयॉर्क की ओर बढ़ते हुए
फिर याद आया वह हवाई सफर जब पत्नी, पिताजी और तीनों छोटे छोटे बच्चों के संग गोएयर की फ्लाइट से नागपुर से हैदराबाद का सफर किया था, वह यात्रा इसी अमिताभ को लेकर मैथ्स ओलम्पियाड के राष्ट्रीय राउंड में उसकी सहभागिता के लिए थी , जिस बेटे के न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन के कन्वोकेशन में हिस्सेदारी के लिए आज सपत्नीक आज दुबई से न्यूयॉर्क के इस सफर पर हैं हम । बेटे से दामाद श्री अभिमन्यु बेटी अनुव्रता ने दुनियां की सबसे प्रतिष्ठित एतिहाद एयर लाइंस के बिजनेस क्लास में श्रेष्ठतम यात्री विमान एयरबस में टिकिट करवा दी है । लेटे हुए सामने लगे टी वी स्क्रीन पर देख रहा हूं हमारा जहाज लंदन के ऊपर से गुजर रहा है । 7 घण्टो की लगभग आधी यात्रा हो चुकी है । मेरा हृदय सारी समग्रता से छोटी बेटी अनुभा को अशेष आशीष दे रहा है, वह इस समय लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में अपने एल एल एम की परीक्षा की तैयारी कर रही होगी ।
तीनो बच्चों की ऐसी वैश्विक सफलता के लिए दिल परमात्मा का कोटिशः धन्यवाद कर रहा है । भगवान यदि ऊपर कहीं है, जैसा हम सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी मानते आए हैं, तो मैं अभी धरती की अपेक्षा कम से कम उनके 12 किलोमीटर निकट हूं।
सुकोमल काली पट्टी आँखों पर पहनकर माँ और पिताजी व पत्नी कल्पना के उस हर छोटे बड़े संघर्ष, समर्थन, बच्चों को प्रोत्साहन, के वे सारे मौके एक साथ दिख रहे हैं जिनकी परिणीति बच्चों की ये उपलब्धियां हैं ।
एक आम सर्विस क्लास भले ही मेरी तरह सरकारी उच्चतम वेतनमान के अंतिम पायदान पर ही क्यों न हो विदेश यात्राओं के लिए किसी सेमिनार की स्पॉन्सरशिप तलाशता रहता है । पर हमें बच्चे ऐसे अवसर व साधन सुलभ करवा रहे हैं कि कल मनमोहक नाती रुवीर को गोद मे लिए उत्फुल्ल था और अभी इस विमान में पूरी फुरसत में हूँ।
सोच रहा हूँ दुनियां क्या सचमुच ग्लोबल विलेज बन गई है ? शायद नहीं यू एन ओ के होते हुए आज तक न तो सारे विश्व में कार ड्राइविंग में केवल लेफ्ट हैंड या राइट हैंड की एक रूपता आ पाई है ,जो निर्णय बहुत सहजता से लिया जा सकता है , एक से जिप कोड , एक से रोड साइन , इमरजेंसी हेतु एक से टेलीफोन नम्बर्स ,एक से बिजली के सॉकेट एक सा वोल्टेज व ऐसे ही जाने कितनी ही वैश्विक समरूपता सरकारें ला सकती हैं । पर जाने क्यों देश तो लड़ने में लगे हैं , सामने लाइव टीवी पर बीबीसी बता रहा है कि ईरान के विरोध में अमेरिका ने अपने जंगी जहाज पर पेट्रियाड मिसाइल भेज दी हैं । पाकिस्तान में ग्वादर के पांच सितारा होटल पर आतंकी हमला होने की खबर भी आ रही है।
मुझे तो कल नाती को गोद में लिए हुए केवल उसके रोने व मुस्कराने की भाषा से उसकी हर डिमांड को डिकोड करती मेरी बेटी व पत्नी की तुतलाकर उससे होती बातें याद आ रही हैं । काश सारी दुनिया के सारे लोग इसी तरह सहजता से डिकोड हो सकते तो शायद दुनियां वास्तव में ग्लोबल बन पाती ।
फिलहाल जहां मेरा विमान है , वहाँ से काशी और काबा दोनों ही एक ओर हैं … पूरब की ओर सिर नवा कर मेरी एक सहयात्री बुरका नशीन महिला रमजान में पवित्र नमाज अदा कर रहीं हैं । मैं भी आदिदेव सूर्य को प्रणाम करते हुए मन ही मन प्रार्थना करता हूँ कि हमारे बच्चों की पीढियों के लिए ही सही प्री इमिग्रेशन क्लियरेंस में किसी दाढ़ी वाले या बुर्के वाली को अब और ह्यूमिलेट न होना पड़े । जब मेरा बेटा हमें लेने न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर आएगा तो उसके साथ बाते करते हुए विश्व बंधुत्व पर मैं उसे ऐसी आश्वस्ति देने योग्य हो सकूँ कि वास्तव में हम सब उसी ग्लोबल विलेज के रहवासी हैं जहाँ पक्षी बिना वीजा या पासपोर्ट के साइबेरिया से भारत आ जाते हैं और भारत की सरहद पर गूंजती स्वर लहरियां बिना प्रतिबंध पाकिस्तान के बॉर्डर को पार कर जाती हैं ।
आमीन कहना चाहते हैं न आप ।
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
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