रंगमंच – नाटक – ☆विश्व इतिहास की पहली महिला योद्धा  ..वीरांगना रानी दुर्गावती ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

रानी दुर्गावती बलिदान पर विशेष
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी द्वारा रानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर विशेष रूप  से लिखित नाटक। यह नाटक  बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक के लिए शिक्षाप्रद गीत, कविता एवं साक्षात्कार  का मिला जुला स्वरूप है जो अपने आप में एक प्रयोग से कम नहीं है। साथ ही यह नाटक हमें इतिहास के कई अनछुए पहलुओं से रूबरू करता है। )

 

☆ नाटक – विश्व इतिहास की पहली महिला योद्धा  ..वीरांगना रानी दुर्गावती☆

 

पात्र-

0 गायन मंडली

1 पुरूष स्वर (1)    –    पापा

2 बालिका  – चीना

3 बालक    –  चीकू

4 खंडहर की आवाजे – (अनुगूंज में महिला स्वर)

5 पुरूष स्वर (2)

6 साक्षात्कार कर्ता

 

जिनसे साक्षात्कार लेना है –

०     रानी दुर्गावती  विश्वविद्यालय के कुलपति

१.    कलेक्टर जबलपुर

२.   संग्रहालय अध्यक्ष- जबलपुर रानी दुर्गावती संग्रहालय

३.    संग्रहालय अध्यक्ष-  मंडला

४.   संग्रहालय अध्यक्ष ..दमोह

५.   मदन महल , वीरांगना दुर्गावती की समाधि के आम पर्यटक एवं उस परिसर के दुकानदार आदि

 

चीना- चीकू । मैने तुमसे कोई कहानियो की किताब लाने को कहा था तुम ये कौन सी पुस्तक उठा लाये हो पुस्तकालय से।

चीकू- दीदी यह पुस्तक है ‘रानी दुर्गावती’ वही दुर्गावती, जिसके विषय मे हमारी पाठ्य पुस्तक में छोटा सा पाठ पिछले साल हमने पढा था।

चीना- अरे वाह। तब तो इससे हमे वीरांगना दुर्गावती के विषय में पूरी जानकारी मिल जायेगी।

पापा- हां बच्चो। तुम लोग इस पुस्तक को पूरी तरह पढ डालो, यह छुटिटयो का अच्छा उपयोग होगा। फिर मै तुम्हें वह जगह घुमाने ले जाउंगा जहां दुर्गावती ने वीरगति पाई थी और मदन महल एवं अन्य वे स्थान भी दिखलाउूंगा जिनका संबंधी रानी से रहा है।

चीकू- पापा। हम लोग पुरातत्व  संग्रहालय भी चलेगे, वहां भी तो रानी से जुडे अवशेष देखने मिल सकेंगे .

पापा- हां, जरूर। तुम्हे पता है…..

पुरूष स्वर (2)- विश्व इतिहास में रानी दुर्गावती पहली महिला है जिसने समुचित युद्ध नीति बनाकर अपने विरूद्ध हो रहे अन्याय के विरोध मे मुगल साम्राज्य के विरूद्ध शस्त्र उठाकर सेना का नेतृत्व किया और युद्ध क्षेत्र मे ही आत्म बलिदान दिया।

साक्षात्कार कर्ता-   और इस विषय मे हमे बता रहे हैं …..

पापा-  बच्चो। प्रसिद्ध गीतकार प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव की एक रचना है ‘‘गोंडवाने की रानी दुर्गावती” — जिसमें उन्होनें दुर्गावती का वैसा ही समग्र चित्रण किया है जैसा प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चैहान ने ‘‘खूब लडी मर्दानी” कविता मे रानी झांसी का वर्णन किया था। तुम यह गीत सुनना चाहेागे।

चीकू-चीना- जरूर। जरूर। सुनाइये न पापा

पापा- तो सुनो

गायक मंडली-

गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का

दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।

उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने

दिये कई है रत्न देश को मां रेवा की घाटी ने

उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी

गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी

 

युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी

प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी

दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था

हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था

साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राह मे अड़ता था

बादशाह अकबर की आंखो में वह बहुत खटकता था

 

एक बार रानी को उसने स्वर्ण करेला भिजवाया

राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया

बदले में रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया

और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुंचाया

दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा

बढा क्रोध अकबर का रानी से न रही वांछित आशा

 

एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान

और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान

 

पापा- बच्चो। इससे पहले कि हम यह गीत पूरा करें, आओ बात करते है आज विंध्य अंचल की पहचान,को लेकर जिलाधीश जबलपुर  से,

साक्षात्कारकर्ता-

चीकू- चीना-पापा हमे उस गीत मे बहुत मजा आ रहा था उसे पूरा सुनवाईये ना।

पापा- अच्छा चलो जैसा तुम लोग चाहो।

गायन मण्डली-

घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा

लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा

 

आती हैं जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे

राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे

 

पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ

विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ

 

रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के

अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने

 

बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा

आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उससे हारा

 

तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला

नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका

 

तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार

युद्ध क्षेत्र में रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार

 

युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार

लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार

 

तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ

काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात

 

भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ

बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ

 

छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार

तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार

 

तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण

सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान

 

पापा- बच्चो। तुम्हें पता है , उस समय तक गौंड़ सेना पैदल व उसके सेनापति हाथियो पर होते थे , जबकि मुगल सेना घोड़ो पर सवार सैनिको की सेना थी .अच्छा चीकू तुम सोचकर  बतलाओ कि इस घोड़े और हाथी के अंतर से दोनो सेनाओ की लड़ाई के तरीको में क्या फर्क होता रहा होगा ?

चीकू – .. पापा सीधी सी बात है , हाथी धीमी गति से चलते रहे होंगे और  घोड़े तेजी से भागते ही होंगे इसलिये जो मुगल सैनिक घोड़ो पर रहते होंगे  वे तेज गति से पीछा भी कर सकते रहे होंगे और जब खुद की जान बचाने की  जरूरत होती होगी तो वो तेजी से भाग भी जाते होंगे . पर पैदल गौंडी सेना धीमी गति से चलती होगी और वो जल्दी भाग भी नही सकते रहे होंगे . मैं सही कह रहा हूं न पापा !.

पापा -… बिलकुल सही बेटा . विशाल, सुसंगठित, साधन सम्पन्न मुगल सेना जो घोड़ो पर थी उनसे जीतना संख्या में कम, गजारोही गौंड सेना के लिये लगभग असंभव था,  फिर भी जिस तरह रानी ने दुश्मन से वीरता पूर्वक लोहा लिया, वह नारी सशक्तीकरण का अप्रतिम उदाहरण है। आओ बात करते है जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति जी से  जो इन ऐतिहासिक मूल्यो को नई पीढ़ी में पुर्नस्थापित करने हेतु महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है-

साक्षात्काकर्ता-

पापा – बच्चो। आओ अब उस गीत को पूरा कर लें।

गयक मडंली-

सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ

ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास

 

फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस

बाण निकाला स्वतः हाथ से यद्यपि हार का था आभास

 

क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार

दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार

 

घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार

तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार

 

स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे

जिसकी आभा साफ झलकती गढ़ मंडला की रानी में

 

महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी

सारे गौंडवाने मे जन जन से जो गई सराही थी

 

असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में

दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में

 

जीकर दुख मे अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान

24 जून 1564 को इस जग से था किया प्रयाण

 

है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार

गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार

 

कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार

बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दे जो उपहार

 

कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश

अगर न बरसा होता पानी तो कुछ और हुआ होता इतिहास

 

चीना-चीकू- मजा आ गया। इस गीत मे तेा जैसे सारी कहानी ही पिरो दी गई है।

पापा- हां बेटा।  दरअसल कोई तारीख अच्छी या बुरी नहीं होती, ये हम होते है, जो अपने कामो से उस तारीख को स्वर्णाक्षरो मे लिख डालते है, या उस पर कालिख पोत देते है, फिर उन्ही घटनाओ को इतिहास मे रचनाकार समेट कर पुस्तक तैयार कर देते है पीढियो के संदर्भेा के लिये।

पुरूष स्वर- (वाचक स्वर) रानी दुर्गावती पर अनेक पुस्तके लिखी गई है, कुछ प्रमुख इस तरह है-

  1.   राम भरोस अग्रवाल की गढा मंडला के गोंड राजा
  2.   नगर निगम जबलपुर का प्रकाशन रानी दुर्गावती
  3.   डा. सुरेश मिश्रा की कृति रानी दुर्गावती
  4.   डा. सुरेश मिश्र की ही पुस्तक गढा के गौड राज्य का उत्थान और पतन
  5.   बदरी नाथ भट्ट का नाटक दुर्गावती
  6.   बाबूलाल चौकसे का नाटक महारानी दुर्गावती
  7.   वृन्दावन लाल शर्मा का उपन्यास रानी दुर्गावती
  8.   गणेश दत्त पाठक की किताब गढा मंडला का पुरातन इतिहास

इनके अतिरिक्त अंग्रेजी मे सी.यू.विल्स, जी.वी. भावे, डब्लू स्लीमैन आदि अनेक लेखको ने रानी दुर्गावती की महिमा अपनी कलम से वर्णित की है।

महिला अनुगूंज स्वर- इस वीरांगना की स्मृति को अक्षुण्य बनाये रखने हेतु भारत सरकार ने 1988 मे एक साठ पैसे का डाक टिकट भी जारी किया है।

पापा- आओ बच्चो तुम्हे ले चले रानी की पत्थरो पर लिखी ऐतिहासिक इबारत को पढने- ये है मदन महल का किला और यह एक पत्थर आधार शिला बैलेसिंग राक, प्रकृति का अद्भुत करिष्मा, कितना आकर्षक दिखता है इस उॅचाई से, इन पहाडियो पर आओ बात करें इस एतिहासिक स्मारक पर आये इन हमारे जैसे अन्य पर्यटको से।

साक्षात्कार कर्ता-………………………

पर्यटक………………………..

चीना-पापा, जबलपुर मे रानी दुर्गावती के और कौन कौन से स्मारक है?

पापा- बेटे। रानी ने अपने शासनकाल मे जबलपुर मे अनेक जलाशयो का निर्माण करवाया, अपने प्रिय दीवान आधार सिंग, कायस्थ के नाम पर अधारताल, अपनी प्रिय सखी के नाम पर चेरीताल और अपने हाथी सरमन के नाम पर हाथीताल बनवाये थे। ये तालाब आज भी विद्यमान है। प्रगति की अंधी दौड मे यह जरूर हुआ है कि अनेक तालाब पूरकर वहा भव्य अट्टालिकाये बनाई जा रही है।

चीकू- पापा रानी दुर्गावती के समय की और भी कुछ चीजे, सिक्के आदि दिखलाइये ना।

पापा- बेटा, इस विषय मे तुम्हे रानी के नाम पर ही स्थापित रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर की अध्यक्षा बतायेंगी।

साक्षात्कार- संग्रहालय अध्यक्ष से ।

चीना- पापा, दुर्गावती ने और कौन कौन सी लडाइयां लडी थी ?

पापा- बेटा। रानी दुर्गावती ने सर्वप्रथम मालवा के राज बाज बहादुर से लडाई लडी थी, जिसमें बाज बहादुर का काका फतेहसिंग मारा गया था। फिर कटंगी की घाटी मे दूसरी बार बाज बहादुर की सारी फौज का ही सफाया कर दिया गया। बाद मे रानी रूपमती को सरंक्षण देने के कारण अकबर से युद्ध हुआ, जिसमें दो बार दुर्गावती विजयी हुई पर आसफ खां के नेतृत्व मे तीसरी बार मुगल सेना को जीत मिली और रानी ने आत्म रक्षा तथा नारीत्व की रक्षा मे स्वयं अपनी जान ले ली थी .

पुरूष 2 (वाचक स्वर)- नारी सम्मान को दुर्गावती के राज्य मे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी। नारी अपमान पर तात्कालिक दण्ड का प्रावधान था। न्याय व्यवस्था मौखिक एवं तुरंत फैसला दिये जाने वाली थी . । रानी दुर्गावती एक जन नायिका के रूप मे आज भी गांव चौपाले में लोकगीतो के माध्यम से याद की जाती हैं .

गायक मडंली-

तरी नाना मोर नाना रे नाना

रानी महारानी जो आय

माता दुर्गा जी आय

रन मां जूझे धरे तरवार, रानी दुर्गा कहाय

राजा दलतप के रानी हो, रन चंडी कहाय

उगर डकर मां डोले हो, गढ मडंला बचाय

हाथन मां सोहे तरवार, भाला चमकत जाय

सरपट सरपट घोडे भागे, दुर्गे भई असवार

तरी नाना………..

वाचक स्वर- ये लोकगीत मंडला, नरसिंहपुर, जबलपुर, दमोह, छिंदवाडा, बिलासपुर, आदि अंचलो मे लोक शैली मे गाये जाते है इन्हें सैला गीत कहते है।

वाचक स्त्री कण्ठ- रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालींजर मे हुआ था . उनके पिता कीरत सिंह चन्देल वंशीय क्षत्रिय शासक थे। इनकी मां का नाम कमलावती था। सन् 1540 में गढ मंडला के राजकुमार दलपतिशाह ने गंधर्व विवाह कर दुर्गावती  का वरण किया था। 1548 मे महाराज दलपतिशाह के निधन से रानी ने दुखद वैधव्य झेला। तब उनका पुत्र वीरनारायण केवल 3 वर्ष का था। उसे राजगद्दी पर बैठाकर  रानी ने उसकी ओर से कई  वर्षो तक कुशल राज्य संचालन किया।

वाचक पुरूष स्वर (2)- आइने अकबरी मे अबुल फजल ने लिखा है कि रानी दुर्गावती के शासन काल मे प्रजा इतनी संपन्न थी कि लगान का भुगतान प्रजा स्वर्ण मुद्राओ और हाथियो के रूप मे करती थी।

चीकू- पापा। मुझे तो लगता है, शायद यही संपन्नता, मुगल राजाओ को गौड राज्य पर आक्रमण का कारण बनी।

चीना- अरे खूब चीकू, तुम तो बडे चतुर बन गये।

पापा- हां बच्चे, तुम बिल्कुल सही हो लेकिन, महत्वपूर्ण बात यह है कि अकबर ने विधवा रानी पर हमला कर, सब कुछ पाकर भी कलंक ही पाया, जबकि रानी ने अपनी वीरता से सब कुछ खोकर भी इतिहास मे अमर कीर्ति अर्जित की।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

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