श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी “राज”
* मेरी यात्रा *
(श्री राजेन्द्र कुमार भण्डारी “राज” जी का e-abhivyakti में स्वागत है। श्री राजेन्द्र कुमार जी बैंक में अधिकारी हैं एवं इनकी लेखन में विशेष रुचि है। आपकी प्रकाशित पुस्तक “दिल की बात (गजल संग्रह) का विशिष्ट स्थान है। यह यात्रा संस्मरण “मेरी यात्रा” में श्री राजेन्द्र कुमार भण्डारी “राज” जी ने गुजरात, महाराष्ट्र एवं गोवा के विशिष्ट स्थानों की यात्रा का सजीव चित्रण किया है। )
मैंने अपनी यात्रा द्वारका दिल्ली से 15 अक्तूबर 2018 को पौने तीन बजे दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन से प्रारम्भ की जो अहमदाबाद तक थी। मैं अहमदाबाद सुबह नौ बजकर पचपन मिनट पर पहुँचा। इसके बाद जबलपुर से सोमनाथ जाने वाली ट्रेन पकड़ी, क्योंकि सबसे पहले मुझे सोमनाथ बाबा के दर्शानाथ हेतु सोमनाथ जाना था। जबलपुर-सोमनाथ एक्स्प्रेस रूक-रुक कर चल रही थी, क्योंकि यह ट्रेन अपने समय से पहले ही दो घंटे विलंब से थी और अहमदाबाद से यह ग्यारह बजकर बाईस मिनट पर चली थी। अतः यह हर गाड़ी को स्टेशन से पहले रूक कर उसे पहले जाने देती थी अपनी देरी से आने का परिणाम जो भुगतना था। इस रास्ते में बहुत अच्छे-अच्छे स्टेशन जैसे वीरपुर, सूरेन्दरनगर, राजकोट, भक्तिनगर, नवागड़, जेतलसर, जूनागड़, केशोद, मालिना, हाटीना, चौरवाड रोड़ और वैरावल आदि-आदि आए। वैरावल में नाव यानि कि नौका ही नौका थे, जैसे कि वैरावल वैरावल ना होकर नौकागढ़ हो। मौसम बहुत सुहाना था। मस्त-मस्त हवा चल रही थी। ठंड का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था। दिन में धूप भी मजेदार थी। कपास, अरण्ड, मिर्ची, जीरा और सूरजमुखी के खेत चमचमा रहे थे। वह दृश्य देखते ही बनता था। जैसै-जैसे सूरज ढ़ल रहा था मौसम की मस्ती बढ़ती जा रही थी। मौसम अपने पूरे यौवन पर था। अब शाम हो चली थी। दिन ढ़ल गया था। रात होने लगी थी। पक्षियों की तरह मैं भी अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रहा था। जूनागढ़ के बाद गाडी़ ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। मानों दिन की सारी कमी अब पूरी करनी हो। अन्ततः मैं सोमनाथ पहुँच ही गया, रात के आठ बजकर इक्यावन मिनट पर।
चलने को यहाँ के लोग “हालो” बोलते हैं। हालो भई हालो मतलब “चलो भाई चलो” और “बैसो” मतलब “बैठो”, त्रण मतलब “तीन”। जमी लिधौ मतलब “खाना खा लिया” आदि-आदि। भाषा बडी मधुर हैं लोग शांत व सुशील स्वभाव के हैं अर्थात जैसी भाषा वैसै ही लोग, मानस मतलब “लोग”। शुद्ध भाषा का अनुसरण ये लोग बखूबी करते हैं। पर एक बात यहाँ ख़ास हैं रात को सब लोग अपने-अपने मुख्यः द्वार के बाहर बैठ जाते हैं जैसे कोई पंचायत कर रहे हों। घर की सारी बत्तियां बन्द करके, केवल एक मुख्य कमरे को छोडकर, इससे बिजली की बचत तो होती ही हैं पर साथ में पैसे की भी। अब मैं सोमनाथ पहुँच गया। सोमनाथ रेलवे स्टेशन से मैनें आटो-रिक्शा लिया और आशापुरा होटल नौ बजे पहुँच गया। यह होटल सोमनाथ मंदिर के बिल्कुल पास में ही था। सुबह 17 अक्तूबर 2018 को 7 बजे सोमनाथ बाबा के दर्शन किए और समुद्र को प्रणाम किया उसके बाद त्रिवेणी के भालसा मंदिर (यहाँ श्री कृष्ण जी के पैर में तीर लगा था। जब श्री कृष्ण जी यहाँ विश्राम कर रहे थे तब एक भील ने उनके पग में तीर मारा था) के दर्शन किऐ।
फिर कार से ग्यारह बजकर पाँच मिनट पर दीव के लिए निकल पड़ा। रास्ते में बड़ी गर्मी थी, परंतु समुद्र होने के कारण इसका तनिक भी पता न चला। दीव के रास्ते में सुंदरपुरम, गौरखमडी, प्रांचि, मोरडिया, कोडियार केसरिया होते हुऐ दीव शहर सवा बजे पहुँचा। रास्ते में नारियल के पेड़ों की भरमार थी। जौं, गन्ना और मूंगफली, बाजरा की खेती थी। भेड बकरियाँ रास्ते की शान थी। जहाँ देखो वहाँ जालाराम का होटल या ढाबा मिल जाता था। यहाँ धर्मशालायेँ भी बहुत हैं। लोग मावा व गुटका बहुत खाते हैं तथा साथ ही सोडा भी बहुत पीते हैं। मैं पहले दीव फोर्ट, दीव संग्रहालय, चक्रवर्ती बीच, आई एन एस कुकरी, गंगेशवर मंदिर, फिर नागवा बीच गया। यहाँ पानी कौटा जेल देखा जो समुंदर के बीचो बीच में है। मैं यहाँ बीच से पाँच बजकर बीस मिनट पर चला। ताड़़ी व नारियल के पेडों की भरमार को देखते हुऐ चैक पोस्ट से छः बजे निकला और सोमनाथ, आठ बजकर अड़तालीस मिन्ट पर पहुँचा गया। वहाँ से सवा दस बजे सोमनाथ से औखाँ के लिए ट्रैन पकडी जो सोमनाथ से दस बजकर उन्नीस मिनट पर औखाँ के लिए चल पडी।
रास्ते में वेरावल, कसौद, जूनागढ़, राजकोट, जामनगर, खमबाडिया, भोगाथ, भाटिया से होते हुऐ द्वारका से सात बजकर पचपन मिनट पर पहुँचा। खाने के पैकेट को यहाँ पार्सल बोलते है द्वारका में जुलेलाल गेस्ट में ठहरा। मगर वहाँ से 18 अक्तूबर 2018 दोपहर के दिन बेट द्वारका के लिए निकला। सबसे पहले रुक्मणी माता मंदिर के दर्शन किए। उसके बाद 16 किलेमीटर दूर नागेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन किए। इसके बाद 5 किलोमीटर दूरी पर गोपी तलाब था वहाँ गोपी तलाब के दर्शन किए। अंत में चार बजकर बीस मिनट पर औखाँ यानि कि बेट द्वारका गया। वहाँ पाँच बजकर बीस मिनट पर द्वारिकाधीश श्री कृष्ण जी के दर्शन करने के बाद बेट द्वारिका से छः बजकर चालीस मिनट पर द्वारिका के लिए वापस हो लिया और सात बजकर पचपन मिनट पर द्वारिका पहुचँ गया।
अगले सफ़र के लिए मैंने अपने तरक्क़ी के पहले पडाव़ व मेरी मनचाही जगह पौरबन्दर को चुना। मैंने जुलेलाल होटल को खाली किया। होटल ठीक नौ बजे छोड़ कर नौ बजकर दो मिनट पर पोरबन्दर की बस पकडी़ और चल पडा़ अपनी मनपसन्द राह यानि मंजिल की ओर। जय श्रीकृष्णा। जय सुदामाजी की।
पोरबन्दर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी और श्री कृष्णजी के सखा श्री सुदामाजी की जन्म स्थली हैं। रास्ते में, भोगात, लामबा, हरसद, वीसावडा, पालकडा, रातडी आवीयो नतलब आया। यहाँ हऱसद माताजी का चर्चित मंदिर हैं। कुछ शब्द जैसे बे वी गयो, आ वी गयो, चालो, सू नाम छै, क्या जाओ छौ, तमारो देश मतलब गावँ के गुजराती भाषा के शब्द बडे़ मधुर लगते थे। पोरबन्दर में कीर्ती मंदिर यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के दर्शन किए बाद में सुदामा मंदिर के दर्शन, राऩावाव में जामुवंत गुफा के जो पोरबन्दर से 12 किलोनीटर की दूरी पर है। (जामवंत की गुफा की मिट्टी में सोना पाया जाता हैं ऐसा यहाँ के लोग कहते हैं, परंतु यह मिट्टी घर तक ले जाते जाते गायब हो जाती हैं केवल कुछ नसीब वालों के घर तक पहुंचती हैं।)
माधोपुर में माँ रानी रुक्मणी के मंदिर के दर्शन किये। माधोपुर पोरबन्दर से 40 किलोमीटर दूर है। यह माँ रुक्मणी का जन्म स्थल हैं जहाँ से भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी को भगा कर ले गये थे। इसके बाद चौपाटी गया तथा शाम को राम मंदिर शांतिपनी मंदिर गया वहाँ लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किए। और रात को सूरत के लिये ट्रेन पकड़ी जो पोरबन्दर से नौ बजकर सात मिनट पर मुंबई के लिये रवाना हुई। पोरबन्दर की छवि निराली है। पुरानी यादें ताजा हो गईं। कुछ पुराने मित्र मिल गये। बडा़ मजा आया। अब सूरत से मुझे शिरडी जाना था जो नासिक से कुछ आगे है। रास्ते में बड़े-बडे़ स्टेशन जैसे जामनगर, राजकोट, सुरेन्द्रनगर, नडियाड, कणजरी बोरीवली, आनन्द, वसाद, बडोदरा (बरोडा), विश्वामित्री, ईटोला, मियागाम, करजन, भरूच, अंकलेश्वर, पानौली, कौसम्मभा, कीम, सायण, गोठनगाम आदि-आदि फिर सूरत आया। यहाँ की भाषा वाह क्या कहने- आ बाजू मतलब “इस तरफ”। पग मतलब “पैर”, हम सपिड बधारी मतलब “रफ्तार तेज कर ली”, हम जौईयो का मतलब “चाहना”, जलसा करो मतलब “आनंद हो”, तपास मतलब “ढूँढना”, बांधौ नथी मतलब “कोई ऐतराज नहीं” आदि-आदि।
भरूच में सिंगदाना (मूंगफली) बहुत मिलता है। वैसे समस्त गुजरात में मूंगफली, अरणड, बाजरा, मिर्च, सौप, सूरजमुखी, जौ, नारियल, कैसर आम, आलू, अदरक, लहसुन, सिरडी (ईख मतलब गन्ना), चना, मुँग दाल, अरहर दाल आदि-आदि बहुत होता हैं। यहाँ ज़मीन में आयल (तेल) बहुत निकलता है। सूरत में डायमंड यानी हीरा और साडि्यों का काम ज्यादा होता हैं। राजकोट में मशीनरी का जिस मशीन का पार्ट कहीं नहीं मिलता वह यहाँ जरूर मिल जाएगा। साढ़े बारह बजे सूरत पहुँचा और सूरत बस अड्डे से नासिक के लिए बस पकड़ी जो डेढ़ बजे नासिक के लिए रवाना हुई। नवसार, धर्मपुरा और पेठा से होती हुए नासिक पौने नौ बजे पहुँची। धर्मपुरा में नाश्ते के लिए एक होटल पर रुकी जो बहुत ही बेकार था केवल भजिया चाय और कोल्ड ड्रिंक के अलावा यहाँ कुछ नहीं था। रास्ता भी काफी खराब था।
नासिक से शिर्डी के लिए बस ली जो नौ बजे शिर्डी के लिए रवाना हुई। नासिक बहुत खूबसूरत शहर है। शिर्डी ग्यारह बजकर बीस मिनट पर पहुँच गया। और होटल ग्यारह बजकर चालीस मिनट पर पहुँच गया। सुबह बाबा साईनाथ के दर्शन किए। रविवार की वजह से मंदिर में बहुत भीड़ थी। यहाँ पहले दर्शन पास लेना पडता हैं फिर दर्शन की लाईन में लगना पडता है। लाईन से ही बाबा के दर्शन होते हैं। हर अच्छी और पक्की व्यवस्था है। बड़े आराम से दर्शन दिए बाबा साईनाथ जी महाराज ने। दिल और मन दोनों गदगद हो गया। थोडा बाजार घूमा और फिर खाना खाकरवापस होटल आ गया। और थोडा सा आराम किया। उसके बाद ट्रैवल एजेंसी से गोवा जाने वाली बस की टिकट कराई जो चार बजे की थी। होटल से सवा तीन बजे निकला और बस पकडी। बस ठीक चार बजे गोवा के लिए चल पड़ी। शिर्डी छोडने का दिल तो नहीं कर रहा था, परन्तु आध्यात्मिकता में ज्यादा न पड़ कर बाकी कार्य भी पूरे करने थे क्योंकि काफी दिनों से मेरी इच्छा गोवा देखने की थी, तो मैने सोचा यह अच्छा अवसर हैं क्योंकि की गोवा यहाँ से नजदीक भी था अत: इस अवसर का लाभ लिया जाए इसलिए मैने आनन-फानन में चार बजे गोवा की टिकट कराई और चल दिया गोवा बच्चों को बोला तो वे भी बड़े खुश हुए और उन्होंने गोवा से दिल्ली वापसी की 24 तारीख की चार बजकर पैंतीस मिनट की एयर एशिया की टिकट की बुकिंग करा दी ।
अब मै सुबह पाँच बजे गोवा पहुँच गया था। रास्ते में गाडी कोपरगाँव, अहमदनगर टोल पर रुकी। पणजी से होते हुए गोवा सवा दस बजे पहुँच गया। वहाँ से कोलुआ बीच के लिए टैक्सी ली और सीधा जिम्मी कॉटेज पहुँचा। ग्यारह बजे कमरा लिया। थोड़ा आराम किया और एक बजे कोलुआ बीच गया। पूरे दिन मौज मस्ती की। खाना खाया। शाम को मार्केटिंग की। अगले दिन उतर (नौर्थ) गोवा घूमने गया। फिर पणजी आया। यहाँ कैसिनो बहुत हैं यहाँ जुआ खेलना अलाउड है। यहाँ के लोग जुआ बहुत खेलते हैं। गोवा में नारियल, काजू बहुत होता है। और यहाँ शराब भी बहुत बनती है। ख़ासकर काजू और नारियल की। मंगलवार 23 अक्तूबर 2018 को बस से नौर्थ गोवा घूमा। सिन्कूरियम डॉलफिन ट्रिप पर गया। सनो पार्क घूमा। रास्ते में रिवर जुआरी और रिवर मांडवी, रॉक बीच आए। 24 अक्तूबर 2018 को दाबोली विमानतल से चार बजकर पैंतीस मिनट पर एयर एशिया की फ्लाइट पकड़ी । सात बजकर अठारह मिनट पर दिल्ली हवाई अड्डा पहुँच गया और 8 बजकर 40 मिनट पर वापस अपने आशियानें मतलब घर पहुँच गया। आखिर में जमानें की खाक़ छान कर “राज़” वापस अपने द्वार।
© श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी “राज”
(श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी ” राज” बैंक में अधिकारी है। आपकी लेखन में विशेष अभिरुचि है। आपकी प्रकाशित पुस्तक “दिल की बात (गजल संग्रह) है।)
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Bahut khoob
यात्रा का चित्रण प्रशंसनीय है।
बहुत-बहुत बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं।