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(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
नर्मदा क्लब, भोपाल में साहित्य यांत्रिकी की काव्य गोष्ठी सम्पन्न
जून की गर्मी में अभियंताओं द्वारा रचित भावपूर्ण रचनाओं की बारिश ने आज दिनांक 10 जून 23 को आयोजित साहित्य यांत्रिकी की काव्यगोष्ठी में वो समां बांधा कि वक़्त भी थम सा गया।
नोएडा से पधारे मूर्धन्य कवि श्री यति जी की अध्यक्षता में श्री अजय श्रीवास्तव “अजेय “ जी के सौजन्य से नर्मदा क्लब, भोपाल में यह गोष्ठी सम्पन्न हुई।
गोष्ठी की शुरुआत श्री प्रमोद तिवारी ने अपनी ग़ज़ल –वो सुकून के दिन थे वो लम्हे गुजर गए — कविता मजदूर दिवस जिसमें एक महिला मजदूर का चित्रण किया का पाठ किया ।
इसी कड़ी में श्री मुकेश मिश्रा जी ने अपनी रचना – आप को हम जब से समझने लगे है। परखने से कोई अपना नही रहते हैं। एवम जीवन दर्शन का बोध कराते दोहों का पाठ किया ।।
साहित्य जगत के स्थापित हस्ताक्षर काव्य संग्रह मंथन के रचयिता श्री अशेष श्रीवास्तव जी ने अपनी सहजता से हर रचना को श्रोताओं के मन उतार दिया।
आपकी रचना –
खींच रखी हैं ख़ुद दीवारें ,फिर कहते तन्हा हो क्यों।
अपनी राह में खुद अड़े लोगों को दोष देते हो क्यों।
सर्वप्रिय रचनाओं में से एक शशक्त रचना रही।
वरिष्ठ कवि श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने अपनी रचना ” झोपड़ी “ के माध्यम से कहते हुए कि – “तुम इकाई हो इमारतों की तुम्हे नही मिटने देंगे, सरकारी अफसर “ जहां एक ओर मजदूरों की व्यथा और उस पर सरकारी कुव्यवस्था पर तीखा तंज किया ,
वहीं अन्य रचना “मुलायम धूप पर शबनमी अहसास हैं रिश्ते।” सुनाकर मन के किसी कोने में छिपे पुराने प्यार को फिर से याद करा दिया।
जिनके चेहरे की स्थाई मुस्कान स्वतः ही उनकी सहजता और सरलता का बोध कराती है वो कोई और नही वरन भोपाल शहर के नाम का झंडा देश के कई अन्य शहरों में स्थापित करने वाले अजेय श्रीवास्तव जी ही थे जिन्होंने जब अपनी कविताओं की पोटली खोली और अपनी रचना अम्माँ की कहानियां से बचपन की याद दिलाई तो जब बिटिया पर आधारित रचना मेरी बिटिया पढ़ी तो हर मां बाप के दिल मे भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा।
इसी क्रम में भोपाल शहर के वरिष्ठम रचनाकारों के प्रतिनिधि आदरणीय श्री प्रियदर्शी खैरा जी ने अपनी ग़ज़ल प्यार समर्पण से होता है बाकी सब समझौता है । वहीं मानवीय विकास को दिखाती रचना का सशक्त पाठ किया।
अपनी रचना – दिवाली की रौनक थे तुम होली के उल्लास थे पापा। सुनाकर हर श्रोता की आंखों में अपने पिताजी की छबि उभार दी। अन्य रचना से – उस पीढ़ी से इस पीढ़ी तक का स्थाई काव्य चित्र उकेरा ।
अंत मे कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ओम प्रकाश यति जी ने अपनी रचनाओं से वरिष्ठता को प्रतिपादित किया ।
अपनी रचना अम्माँ में आप जहां कहते हैं –भले लगती भींगे नयन की कोर है अम्माँ , पर अपनी मुश्किलों के आगे पुरजोर है अम्माँ ।
वहीं अपनी रचना बाबूजी में यह कह कर कि – कुर्ता धोती गमछा टोपी सब दिख पाना मुश्किल था । पर बच्चों की फीस समय पर भरते आए बाबूजी के माध्यम से मध्यमवर्गीय परिवार में पिता कितनी जिम्मेदारियों को ओढ़ कर भी मुस्कुराते हुए परिवार को सीप में मोती की तरह सम्हालता है का सुंदर चित्रण किया।
अंत मे श्री अशेष श्रीवास्तव जी ने आभार प्रकट किया।
साभार – श्री प्रमोद तिवारी, भोपाल मध्यप्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈