☆ सूचनाएँ/Information ☆
(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
☆ साहित्य को समर्पित पत्रिका “व्यंग्य लोक” का लोकार्पण ☆
13 नवम्बर 2024, नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब के कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित एक भव्य समारोह में साहित्य को समर्पित एक नई पत्रिका “व्यंग्य लोक” का लोकार्पण हुआ।
वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय की अध्यक्षता और मुख्य अतिथि डॉ लक्ष्मी शंकर बाजपेयी तथा डॉ बजरंग बिहारी तिवारी एवं डॉ रमेश तिवारी के विशिष्ट आतिथ्य में इस पत्रिका का लोकार्पण हुआ। पत्रिका के संपादक श्री राम स्वरूप दीक्षित ने पत्रिका के प्रकाशन की पृष्ठभूमि बताई और साहित्य को समृद्ध करने की आवश्यकता पर बल दिया।
मंचस्थ अतिथियों के अतिरिक्त श्री राजेंद्र सहगल, श्री वेदप्रकाश भारद्वाज तथा श्री रामकिशोर उपाध्याय ने भी अपनी बात रखी।
प्रायः सभी वक्ताओं ने “व्यंग्य लोक’ के प्रकाशन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए साहित्य के विकास में पत्रिकाओं की सार्थक भूमिका पर अपने-अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। साथ ही व्यंग्य लोक के उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम के अध्यक्ष और व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि पत्रिका का नियमित प्रकाशन एक चुनौती है और धन की कमी आड़े आती है पर यदि आप अपने काम में ईमानदारी से लगे हैं तो तन, मन और धन से साथ देने वालों की कमी नहीं है। लोग आपको रचनात्मक सहयोग तो करते ही हैं, धन से भी सहयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि व्यंग्य लोक से यही अपेक्षा रहेगी कि यह पत्रिका व्यंग्य को और अधिक धार देने का काम करेगी। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य के विकास में पत्रिकाओं की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। व्यंग्य लोक की सार्थकता इसी बात में होगी कि वह अपने पाठकों के अंदर विरोध का भाव भरे ताकि विसंगत समय में व्यक्ति नपुंसक होने से बचे। डॉ जनमेजय ने इस पत्रिका के प्रकाशन के लिए शुभकामनाएं दी और साथ ही सहयोग के रूप में अंशदान का लिफाफा भी भेंट किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद वरिष्ठ साहित्यकार और कवि डॉक्टर लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने कहा कि आज का समय विसंगतियों से भरा है। भारत के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि अपराधी का धर्म देखकर अपराधी के पक्ष में लोग खड़े हो जाएं। यह बहुत बड़ी विसंगति है। और ऐसे समय में ही व्यंग्यकार को, साहित्यकार को आगे आकर विसंगतियों को उजागर करने की जरूरत है। लोग बलात्कारियों के समर्थन में आगे आ रहे हैं, यह बहुत बड़ी चिंता की बात है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि व्यंग्य लोक भी इस कार्य में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेगा और अपनी रचनाओं से, अपनी रचनाओं की धार से लोगों को यथास्थितिवादी होने से बचाएगा।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद वरिष्ठ साहित्यकार और जाने माने दलित चिंतक डॉ बजरंग बिहारी तिवारी ने एक कविता की पंक्तियां उद्धृत करते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की और कहा कि न्यायालय में अभियोग चल रहा है और मुख्य समस्या न्याय की है। बिना नीति से जुड़े न्याय का क्या मतलब ? यह पत्रिका लगातार निकले, सभी चुनौतियों के बावजूद निकले यही उन्होंने अपेक्षा व्यक्त की। उन्होंने पत्रिकाओं की भूमिका को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह व्यंग्य लोक पत्रिका एक दृष्टि के साथ निकल रही है, इसलिए इसकी उपयोगिता और सार्थकता स्वाभाविक है।
विशिष्ट अतिथि डॉ रमेश तिवारी ने कहा की जितनी भी महत्वपूर्ण रचनाएं हैं, शत-प्रतिशत न सही, परंतु 70-80 प्रतिशत महत्वपूर्ण रचनाएं पत्रिकाओं के माध्यम से ही वजूद में आती हैं और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचती हैं। उन्होंने कहा कि लघु पत्रिकाएं उन पगडंडियों की तरह हैं जो हमें हमारे देहरी तक ले जाती हैं। राजमार्गों के दौर में भी आपको घर तक जाने के लिए, अपनी संवेदनाओं को बचाए रखने के लिए यदि पगडंडी पर उतरना पड़े तो समझिए की साहित्यिक यात्रा में जो काम पगडंडियां करती हैं, वही काम लघु पत्रिकाएं करती रही हैं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि जो भी लिखा-पढ़ा जा रहा है या जो भी लिखने-पढ़ने वाला समाज है, उनके लिए पत्रिकाएं संवाद का एक सार्थक मंच तैयार करती हैं, समाज में मानवीय मूल्यों को बचाए रखती हैं। उन्होंने आशा जताई की निस्संदेह व्यंग्य लोक भी मानवीय मूल्यों को बचाए रखने का काम करेगा।
वरिष्ठ साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय ने कहा कि दुनिया में जितनी भी बड़ी-बड़ी क्रांतियां हुई हैं, उनमें अखबारों-पत्रिकाओं का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने कहा की पत्रिकाएं व्यक्ति को, लेखक को अपना सम्मानजनक स्थान दिलाती हैं। निरंतर प्रकाशन एवं गुणवत्ता को बनाए रखते हुए यह पत्रिका लंबे समय तक चले, यही उन्होंने कामना व्यक्त की।
वरिष्ठ व्यंग्यकार वेद प्रकाश भारद्वाज ने कहा कि पत्रिकाएं निकालना मतलब अपना घर फूंकना है और रामस्वरूप जी ने यह चुनौती ली है तो उनकी जितनी प्रशंशा की जाय कम है। उन्होंने कहा कि पहले निकलने वाली लघु पत्रिकाओं ने साहित्य को जिंदा रखा और साहित्य के विकास में ऐसी पत्रिकाओं का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने उम्मीद जताई कि व्यंग्य लोक पत्रिका भी इस परंपरा को बनाए रखेगी और कंटेंट अच्छा हो एवं गुणवत्ता के साथ समझौता न हो तो पत्रिका का भविष्य उज्जवल है।
इस मौके पर वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र सहगल ने कहा कि इसके पूर्व भी व्यंग्य लोक के दो अंक सॉफ्ट कॉपी में हमारे सामने आए हैं और अब यह तीसरा अंक मुद्रित रूप में हमारे सामने आया है। उन्होंने आशा जताई कि व्यंग्य को और आगे बढ़ाने, उसे समृद्ध करने के लिए व्यंग्य लोक बेहतर काम करेगी ऐसी अपेक्षा है। उन्होंने भूत एवं वर्तमान में प्रकाशित हो रही कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का उल्लेख किया और आशा व्यक्त की कि अपनी उत्कृष्ट सामग्री से व्यंग्य लोक भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाएगी।
इससे पूर्व व्यंग्य लोक पत्रिका के संपादक रामस्वरूप दीक्षित ने कहा कि समकालीन व्यंग्य समूह में कई बड़े साहित्यकार सदस्य हैं और सभी सदस्यों के सहयोग एवं मार्गदर्शन से यह समूह चल रहा है, व्यंग्य लोक का यह तीसरा मुद्रित अंक भी इसी सहयोग का परिणाम है। उन्होंने कहा कि हमने इस तरह से काम करना शुरू किया है जैसे हर अंक अंतिम अंक हो। उन्होंने सभा में उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों तथा श्रोताओं, साहित्य प्रेमियों के प्रति भी अपना आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि कोशिश यही रहेगी कि व्यंग्य लोक व्यंग्य के साथ-साथ साहित्य की अन्य विधाओं को स्थान दे और पाठकों के समक्ष उत्कृष्ट सामग्री पहुंचे। इसी अपेक्षा के साथ यह पत्रिका शुरू की गई है और आशा है आप सभी का सहयोग इसी तरह मिलता रहेगा।
वरिष्ठ कवयित्री एवं पूर्व आईएएस अधिकारी डॉ धीरा खंडेलवाल ने अपने सारगर्भित उद्बोधन से विशिष्ट अतिथियों एवं सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्ध श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि व्यंग्य की मारक क्षमता बहुत ही व्यापक है और व्यंग्य की धार कुंद न हो यही कोशिश की जानी चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन युवा साहित्यकार रणविजय राव ने किया। उन्होंने कहा कि पत्रिकाओं की भीड़ में व्यंग्य लोक अपनी अलग पहचान और स्थान बनाएगी।
कार्यक्रम का आरंभ वरिष्ठ कवयित्री स्नेहा साक्षी द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य को बचाए रखना ही व्यंग्य लोक का उद्देश्य है।
पत्रिका की सहायक संपादक आरती शर्मा ने सभी विशिष्ट अतिथियों को मंच पर आमंत्रित किया और अंगवस्त्र एवं पुष्प गुच्छ से अतिथियों और कवियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस व्यंग्य लोक पत्रिका के माध्यम से समकालीन व्यंग्य समूह ने एक कदम बढ़ाया है।
विशिष्ट वक्ताओं के उद्बोधन के उपरांत सभागार में उपस्थित कुछ वरिष्ठ कवियों-कवयित्रियों ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ भी किया। वरिष्ठ कवि श्री नरेश शांडिल्य, सुशांत सुप्रिय, उपासना दीक्षित, प्रेमलता मुरार, मनमोहन सिंह तन्हा और सुधीर अनुपम ने अपनी कविताओं-गज़लों से सभा में उपस्थित श्रोताओं को भावविभोर किया।
इस मौके पर भोपाल, इलाहाबाद, मेरठ के अतिरिक्त दिल्ली और एनसीआर से आए कई साहित्यकार, पत्रकार, साहित्य प्रेमी कार्यक्रम के अंत तक मौजूद रहे। इनमें निर्मल गुप्त, राकेश मिश्र, उपेन्द्रनाथ, प्रभात कुमार, कुमार सुबोध, आशीष मिश्र, अमित कुमार, मनीष सिन्हा, प्रदीप कुमार, रेखा सिंह, सर्वेश कुमारी उल्लेखनीय हैं।
कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा।
रपट : सुश्री आरती शर्मा
साभार -श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈