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(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

साहित्य यांत्रिकी की काव्य गोष्ठी संपन्न  ☆ प्रस्तुति – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव

भोपाल के साहित्य क्षितिज पर अनेक अभियंता निरंतर हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में बड़ा योगदान कर रहे हैं। रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के संस्थापक श्री संतोष चौबे भी इंजीनियर ही हैं।  कविता के हस्ताक्षर श्री नरेश सक्सेना पहचाने हुये नाम है। व्यंग्य में भोपाल के श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव  का नाम राष्ट्रीय स्तर पर लिया जाता है।

विगत दिवस साहित्य यांत्रिकी की मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न हुई। सृजन साधना में   निरंतरता का महत्व सर्व विदित होता है।

वरिष्ठ कवि प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की अध्यक्षता में गोष्ठी संपन्न हुई।

इंज प्रमोद तिवारी ने सामयिक रचना पढ़ी…

चाहता था जीना

 पर वो जी नहीं पाया।

कभी बारिश कभी सूखा।

कभी हरियाली भी आई।

मगर डर हर ऋतु साथ लाई।

गायक एवम् कवि इंज अशेष श्रीवास्तव ने अपनी बात इन शब्दों में रखी…

एक बारिश क्या हुई

सड़कों की कलइ खुल गयी। ।

बुरा वक्त क्या आया

रिश्तों की कलइ खुल गयी।।

इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव ने गजल पढ़ी

रोशनी पे अंधेरे की बात भारी है

शह पे प्यादे से मात भारी है 

उसूलों के बल पे कैसे हों चुनाव

सारे सही गलत पे जात भारी है

रवींद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय वैशाली के कुलाधिपति श्री व्ही के वर्मा ने अपनी रचना इंद्रधनुष  पढ़ी।

नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर श्री अजेय श्रीवास्तव ने लोक जीवन से छठ के गीत परआधारित रचना सुनाई…

काँच ही बांस की बहँगिया

बहँगी लचकत जाए—

गा रही है अम्मा

धीरे धीरे, पोपले मुँह से

नदी का झक सफ़ेद आँचल

फैल गया है

अम्मा के बालों में।

अरघ के डूबते सूरज ने

लील लिया है

अम्मा के माथे की बड़ी चमकती बिंदी को

गा रही हैं अम्मा—

केलवा के पात पे उगे का सूरजवा

इंज मुकेश मिश्रा ने अपनी रचना इन शब्दों में रखी…

दुनिया एक बाजार में तब्दील हो गई,

आदमी ग्राहक बनकर रह गया,

डर, नफा या जरूरत दिखाकर,

इंसान इंसान को ठग रहा।

अध्यक्षीय व्यक्तव्य में प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध ने अभियंता रचनाकारों पर केंद्रित इस साहित्यिक आयोजन की  भूरि भूरि सराहना की। उन्होंने काव्य पाठ करते हुए कहा…

दुनियां यही धनी निर्धन की लेकिन बंटी बंटी

आपस के व्यवहारों में पर कभी न बात पटी 

गोष्ठी के उपरांत सभी ने श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव की ओपन लाइब्रेरी का निरीक्षण किया, अशेष श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तकें डब्बा पुस्तकालय में रखीं।

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ने गोष्ठी का मनहर संचालन एवं कृतज्ञता ज्ञापन किया।

साभार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

संपर्क – ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८  ईमेल – [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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