सुश्री सुनीला वैशंपायन
☆ अतीत की स्मृतियों से… ☆ संकलन – सुश्री सुनीला वैशंपायन ☆
सोशल मीडिया में कई बार अज्ञात लोगों की अज्ञात लोगों द्वारा ऐसी पोस्ट साझा की जाती है जो सहज ही हमें अतीत की स्मृतियों में खोने के लिए विवश कर देती हैं। और उन्हें सहेजने की इच्छा से हम भी सोशल मीडिया पर ही अपने जाने अनजाने मित्रों से साझा कर लेते हैं। प्रस्तुत है ऐसी ही एक पोस्ट –
हमारी यादें कभी भूल नहीं सकेगी। क्योंकि वो अच्छी ही नहीं थी बहुत अच्छी थी।
☆
पहले भटूरे को फुलाने के लिये
उसमें ENO डालिये
*
फिर भटूरे से फूले पेट को
पिचकाने के लिये ENO पीजिये
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☆ जीवन के कुछ गूढ़ रहस्य – आप कभी नहीं समझ पायेंगे ☆
पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को
जीभ से चाटकर कैल्शियम की
कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी
लेकिन
इसमें पापबोध भी था कि कहीं
विद्यामाता नाराज न हो जायें …!!!☺️
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पढ़ाई का तनाव हमने
पेन्सिल का पिछला हिस्सा
चबाकर मिटाया था …!!!😀
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पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती
और मोरपंख रखने से हम
होशियार हो जाएंगे …
ऐसा हमारा दृढ विश्वास था. 😀
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कपड़े के थैले में किताब-कॉपियां
जमाने का विन्यास हमारा
रचनात्मक कौशल था …!!!☺️🙏🏻
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हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते
तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना
अपने जीवन का वार्षिक उत्सव मानते थे …!!!☺️
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माता – पिता को हमारी पढ़ाई की
कोई फ़िक्र नहीं थी, न हमारी पढ़ाई
उनकी जेब पर बोझा थी …☺️💕
सालों साल बीत जाते पर माता – पिता के
कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे …!!!😀
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एक दोस्त को साईकिल के
बीच वाले डंडे पर और दूसरे को
पीछे कैरियर पर बिठा कर
हमने कितने रास्ते नापें हैं,
यह अब याद नहीं बस कुछ
धुंधली सी स्मृतियां हैं …!!!💕
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स्कूल में पिटते हुए और
मुर्गा बनते हमारा ईगो
हमें कभी परेशान नहीं करता था
दरअसल हम जानते ही नहीं थे
कि, ईगो होता क्या है❓️💕
☆
पिटाई हमारे दैनिक जीवन की
सहज सामान्य प्रक्रिया थी😰😀
पीटने वाला और पिटने वाला दोनों खुश थे,
पिटने वाला इसलिए कि हम कम पिटे
पीटने वाला इसलिए खुश होता था
कि हाथ साफ़ हुआ …!!!😀
☆
हम अपने माता – पिता को कभी नहीं बता पाए
कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, क्योंकि
हमें “आई लव यू” कहना आता ही नहीं था …!!!
😰😀💕
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आज हम गिरते- सम्भलते, संघर्ष
करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं,
कुछ मंजिल पा गये हैं तो
कुछ न जाने कहां खो गए हैं …!!!😰
☆
हम दुनिया में कहीं भी हों
लेकिन यह सच है,
हमें हकीकतों ने पाला है,
हम सच की दुनियां में थे …!!!
😰
कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना
और रिश्तों को औपचारिकता से
बनाए रखना हमें कभी आया ही नहीं …
इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे …!!!
😰
अपना अपना प्रारब्ध झेलते हुए
हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं,
शायद ख्वाब बुनना ही
हमें जिन्दा रखे है वरना
जो जीवन हम जीकर आये हैं
उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं …!!!
😰
हम अच्छे थे या बुरे थे
पर हम सब साथ थे काश
वो समय फिर लौट आए …!!!
😰😰
“एक बार फिर अपने बचपन के पन्नों
को पलटिये, सच में फिर से जी उठेंगे”…💕
☆
और अंत में …
हमारे पिताजी के समय में दादाजी गाते थे …
मेरा नाम करेगा रोशन
जग में मेरा राज दुलारा💕
*
हमारे ज़माने में हमने गाया …
पापा कहते है बड़ा नाम करेगा💕
*
अब हमारे बच्चे गा रहे हैं …
बापू सेहत के लिए …
तू तो हानिकारक है। 😰😰
*
सही में हम
कहाँ से कहाँ आ गए …???😰
*
एक बार मुड़ कर देखिये …
और
मुस्करा दीजिए
क्यों कि
Change Is Part Of Life.
Accept It Gracefully 💓😌💓
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लेखक – सोशल मीडिया से – अज्ञात
संकलन : सुश्री सुनीला वैशंपायन
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈