श्री जगत सिंह बिष्ट
(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)
☆ आध्यात्मिक उपलब्धि ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
बुद्ध ने अपने पुत्र राहुल को दीक्षित करने के उपरांत जो शब्द कहे वो वर्तमान परिदृश्य में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
एक दिन बुद्ध राहुल के पास पहुंचे और अपने कमंडल में शेष थोड़े से पानी की ओर इंगित करते हुए पूछा, “राहुल, क्या तुम इस कमंडल में पानी को देख रहे हो?”
राहुल ने कहा, “जी, हां!”
“जो जानबूझकर झूठ बोलता है, उसकी आध्यात्मिक उपलब्धि इतनी सी होती है।”
तत्पश्चात, बुद्ध ने पानी को फैंक दिया और कहा, “देख रहे हो, राहुल, पानी को कैसे त्याग दिया गया है? इसी तरह, जानबूझकर झूठ बोलने वाला आध्यात्मिक उपलब्धि, जो भी उसने अर्जित की हो, का परित्याग कर देता है।”
उन्होंने फिर पूछा, “क्या तुम देख रहे हो कि किस तरह यह कमंडल अब खाली हो गया? इसी तरह, जिसे झूठ बोलने में लज्जा नहीं आती, वह आध्यात्मिक उपलब्धि से रिक्त हो जाता है।”
इसके बाद, बुद्ध ने कमंडल को उल्टा कर दिया और कहा, “क्या तुम देख रहे हो, राहुल, कि कैसे कमंडल उल्टा हो गया? इसी तरह, जो जानबूझकर झूठ बोलता है, अपनी आध्यात्मिक उपलब्धि को उल्टा कर देता है और विकास के लिए अक्षम हो जाता है और अपनी उन्नति के सारे द्वार स्वयं बंद कर लेता है।”
निष्कर्ष में बुद्ध ने कहा, इसलिए जानबूझकर झूठ, मज़ाक में भी, नहीं बोलना चाहिए।
बुद्ध झूठ बोलने से बचने के लिए इसलिए कहते थे क्योंकि वो जानते थे कि झूठ फैलाकर सामाजिक सामंजस्य को भंग किया जा सकता है। समाज में सौहाद्र और सामंजस्य तभी होता है जब लोग एक दूसरे की बातों पर विश्वास करें।
झूठ बोलने वाला, झूठ बोलते बोलते अपने ही भ्रमजाल में फंसता जाता है। वह वास्तविकता से दूर होता जाता है और षड्यंत्रकारी चक्रव्यूह बुनने लगता है।
आज आध्यात्मिक उपलब्धियों की किसे फ़िक्र है, लोग अपनी झूठी प्रतिष्ठा बनाने के लिए मानसिक दिवालियेपन के द्वार पर खड़े हैं। आज प्रतिस्पर्धा है कि कौन कितना झूठ बोले और समाज के तानेबाने को तहस नहस कर दे।
प्रजातंत्र में आपको चुनने का अधिकार है। आप सामाजिक सौहाद्र और सद्भाव चुन सकते हैं। आप ही सामाजिक वैमनस्य और विभाजन का समर्थन भी कर सकते हैं। समाज में समरसता या अराजकता? निर्णय आपका है।
© जगत सिंह बिष्ट
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈