डॉ जयलक्ष्मी आर विनायक
☆ लघुकथा ☆ माँ का दिल ☆ डॉ जयलक्ष्मी आर विनायक ☆
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ऊंची कद काठी के, मृतप्राय से, अपने पति को मृत्यु शैय्या पर देख सुमित्रा का मन धक सा हो रहा था। तीनों बेटियों को बुला लिया था डाक्टर ने जवाब जो दे दिया था। इसलिए हास्पिटल से पति को वापिस लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। वैसे तो छोटी बेटी ने किचन संभाल लिया था। रोटी सब्जी दाल चावल तो बन ही जाता था। पर सुमित्रा को यह रह रह कर लग रहा था कि मेरी बेटियां इतने दूर से आई है, उन्हें कुछ अच्छा खिला सकती।
दूसरे दिन माँ को बेटियों ने घर पर नहीं पाया। सोचा, कहां चली गयी होगीं? तभी दरवाजा खोल माँ का आगमन हुआ। माँ के कंधे पर बैग झूल रहा था। उसमे से उन्होंने एक डिब्बा निकाला और डायनिंग टेबल पर रख दिया। ‘क्या है इसमें?’ बेटियों ने उत्सुकता से पूछा।
‘तुम सबको श्रीखंड पसंद है ना? वो ही लेने गयी थी।’
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© डॉ जयलक्ष्मी आर विनायक
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
Shot, sweet and touching! माँ आखिर माँ होती है!
Indeed , touches us n has such a beautiful thought that in even in the most adverse pressing circumstance she could think of what her kids lived most .
Wonderful response
सही फरमाया
Yeh Maa ka dil hota hai kisi bhi paristhithi mein apno keh liyae hi sochati hai aur phir bacchae ho toh aur bhi apne muh ka niwala bhi deh deye
Sahi Mala
I feel she should not have left her husband who is on death bed to bring Shrikhand. Daughters will also not feel like eating sweets while seeing their father on last stage.
A different perspective. Thanks
बहुत ही बेहतरीन लेख