श्री सदानंद आंबेकर 

 

 

 

 

(  श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। गायत्री तीर्थ  शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से  निरंतर प्रवास श्री सदानंद आंबेकर  जी  द्वारा शिक्षक दिवस पर रचित विशेष लघुकथा  ‘स्टेटस’  हमें वर्तमान जीवन में मानवीय दृष्टिकोण के कटु सत्य से रूबरू कराती है । बंधुवर  श्री सदानंद जी  की यह लघुकथा पढ़िए और स्वयं तय करिये। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन ।

शिक्षक दिवस विशेष – लघुकथा– स्टेटस


” भाईयों और बहिनों, शिक्षक तो भगवान से भी बड़ा होता है, भगवान जन्म देता है पर शिक्षक तो मनुष्य को गढ़ता है। आज शिक्षक दिवस पर  जिन रामस्वरूप जी के सम्मान हेतु हम सब एकत्रित हैं उन्हीं ने मुझ अनगढ़ को बनाया है जिसके कारण आज मैं सफलता की इस चोटी पर हूं। यदि ये न होते तो मेरा जीवन क्या और कहां होता, इसलिये धन्य हैं ये हमारे शिक्षक । काश  मेरे घर में भी इन जैसा कोई शिक्षक होता तो मेरा जीवन सफल हो जाता।”

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शहर के सराफा संघ, स्टाॅक एक्सचेंज और अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष, नगर सेठ मनोहर लाल का भाषण  पूरा हुआ।

आज शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्मान समारोह की अध्यक्षता कर रहे सेठ मनोहरलाल ने हाथ जोडते हुये समारोह से बिदाई ली और कार की ओर बढने लगे। पंडाल से निकलते हुये उन्होंने देखा कि  रामस्वरूप जी पीछे चल रहे उनके सचिव दीक्षित से कुछ खुसुर-पुसुर कर रहे हैं।

सबके कार में बैठते ही कार चल पडी तो मनोहरलाल जी ने आगे बैठे दीक्षित से पूछा- अरे दीक्षित, वो मास्टर तुमसे क्या बात कर रहा था भाई ?

दीक्षित ने पीछे मुड कर कहा – अरे सर, आपकी बातों से प्रभावित होकर मास्टर रामस्वरूप जी ने मुझे कहा कि उनका एक बेटा है जो बाहर शासकीय हाई स्कूल में शिक्षक है और यदि हम चाहें तो आपकी बिटिया से उसके विवाह के लिये बात कर सकते हैं। उन्हें बडा अच्छा लगेगा।

एक रहस्यमय मुस्कुराहट के साथ मनोहरलाल ने कहा- पर हमें अच्छा नहीं लगेगा दीक्षित ! अरे भाई शहर के अरबपति सेठ मनोहरलाल का दामाद एक मास्टर का छोरा, वो खुद भी मास्टर !! जितने कमरे उनके घर में हैं उससे ज्यादा तो मेरे यहां बाथरूम हैं दीक्षित !! ठीक है, उन्होंने मुझे स्कूल में पढाया है पर पैसा तो मैंने अपनी मेहनत से कमाया है। भाषण देना अलग बात है, फिर सोचो लोग क्या कहेंगे मुझे, अरे आखिर हमारा भी तो कोई स्टेटस है ।

दीक्षित चेहरे पर असमंजस के भाव लिये उन्हें देखता रह गया।

©  सदानंद आंबेकर

शान्ति कुञ्ज, हरिद्वार (उत्तराखंड)

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Shyam Khaparde

सच्ची अभिव्यक्ति