सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता – क्या यही युक्ति है स्त्री मुक्ति की…☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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कुछ कुछ हुआ
बहुत कुछ होना बाकी है।
दस प्रतिशत ने आसमाँ छुआ
क्या इतना काफी है !
किसी मुगालते में मत रहना
सतही आकर्षणों का चक्रव्यूह
भयावह है !
*
कुछ सेकेंड्स की अभद्र रील बनाना
बिकिनी को “माई लाइफ माई च्वाइस”के अंतर्गत ले आना
आधी रात में साथी महिलाओं के संग सड़क पर
“मेरी रात मेरी सड़क”
नारा लगाना !
सार्वजनिक स्थानों पर शिशु को स्तनपान कराना
*
क्या यही युक्ति है
स्त्री मुक्ति की
या फिर जागरण के नाम पर सुषुप्ति है !
कठुआ ,हाथरस, उन्नाव ,हैद्राबाद—
कैसे भूल जाती हो
ग्रामीण सर्वहारा,परंपराओं के आतंक तले कराहती स्त्री
तुम्हारे नारों में
क्यों नहीं समा पाती ?
*
फिर ये
एच. डी मेकअप करके
हल्ला मचाना किसलिए ?
स्त्री परिवार समाज और कानून
परस्पर सापेक्ष हैं
*
एक की मुक्ति के लिये
सभी को मुक्त होना होगा ।
अन्यथा
महिला दिवस
महज बिजूका बनकर रह जायेगा।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈