सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता ☆ टैटू… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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कुछ स्त्रियों को
कहते हुये सुना
ये जो टैटू हैं ना
स्वर्ग तक साथ जाते हैं !
देह तो राख हो जाती है !
मेरी अंतरात्मा की
बाँहों पर
जंगल पहाड़
नदी निर्झर
चिड़िया तितली
सुरधनु बिजली
सूरज और उल्काएं
सारे
चाँद तारे
पाँवों पर नाव
पीठ पर समय की दीठ के
टैटू बने हैं
दो आँखों से दिखाई नहीं देते
तीसरी आँख की
दरकार है
मेरी रचनाओं में वो
आखर आखर
नज़र आयेंगे।
ये टैटू
सफर में मेरा
हर पल साथ निभाएंगे।।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈