सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ “नवाशा” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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“नवल वर्ष नवाशा दमके
नयनों में जलजात खिलें।।
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वैदिक ऋचा सी हों सुबहें
हिमकणिका के साथ मिले
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सदा प्रमाणित हों निर्दोष
दर्पण सारे स्नात मिलें।।
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मौसम के रूमालों पर भी
सुरभित पारिजात मिलें।।
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शिल्प सनातन गढ़ पायें
वो सारस्वत सौगात मिले।।
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जीवन में नित गीत गद्य का
सही सही अनुपात मिले।।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈