श्री आशीष गौड़

सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री आशीष गौड़ जी का साहित्यिक परिचय श्री आशीष जी के  ही शब्दों में “मुझे हिंदी साहित्य, हिंदी कविता और अंग्रेजी साहित्य पढ़ने का शौक है। मेरी पढ़ने की रुचि भारतीय और वैश्विक इतिहास, साहित्य और सिनेमा में है। मैं हिंदी कविता और हिंदी लघु कथाएँ लिखता हूँ। मैं अपने ब्लॉग से जुड़ा हुआ हूँ जहाँ मैं विभिन्न विषयों पर अपने हिंदी और अंग्रेजी निबंध और कविताएं रिकॉर्ड करता हूँ। मैंने 2019 में हिंदी कविता पर अपनी पहली और एकमात्र पुस्तक सर्द शब सुलगते  ख़्वाब प्रकाशित की है। आप मुझे प्रतिलिपि और कविशाला की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। मैंने हाल ही में पॉडकास्ट करना भी शुरू किया है। आप मुझे मेरे इंस्टाग्राम हैंडल पर भी फॉलो कर सकते हैं।”

आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं हृदयस्पर्शी कविता  पिता…

☆ कविता ☆ पिता… ☆ श्री आशीष गौड़ ☆

इन दो शब्दों में भ्रमांड समा जाता है ।

 

सर्जन से समकालीन तक

बिंब से प्रतिबिंब , पिता हरपल साथ रहता है ॥

 

गोद में लिये श्वेत अंबर तले,

पिता हमें अनंतता सिखाता है ।

 

ममता की आकाश गंगा का अनर्गल यायावर बन,

कंधे को भरोसा , कदम बढ़ाना सिखाता है ।

 

स्कूल का पहला बस्ता दिला, माँ की ओट में खड़े ।

हमारे स्वावलंबी कदमों की ताल पे अपने होने का एहसास दिलाता है ।

 

बहिर्मुखी बकवाद में सच परखना ,

परस्पराधीनता से स्वाधीनता की राह दिखाता है ।

 

हमारी हर उस चोट पे , जहां माँ बिलखती है ।

वहीं हमें परिस्थिति अवलोकन सिखाता है ॥

 

जीवन में आश्रित से स्वाश्रित तक का सफ़र ।

पिता हमें चीत से बोध कराता है॥

 

माँ और पिता के बीच का परस्पर यह फ़र्क़

पिता हँस के टाल जाता है ॥

 

माँ से की गई अटखेली में दिलचस्पी ना दिखाता।

हमारी बकैती का पूरा ब्योरा रखता है ॥

 

अस्तित्व की जित्तोज़हद में उगलते मार्तंड से बचाता।

पिता हर उन परछाइयों में देव बन रहता है ॥

 

हर बच्चे का पहला हीरो , वह पहला शक्तिमान।

एक सुदृढ़ निरापद , हमारे हर उस मूल सिद्धांत की बुनियाद होता है ॥

 

पिता , माँ के पीछे लिखा ।

हमारे हर सार का अर्थ , एक निरंकारी भ्रं रहता है ॥

©  श्री आशीष गौड़

वर्डप्रेसब्लॉग : https://ashishinkblog.wordpress.com

पॉडकास्ट हैंडल :  https://open.spotify.com/show/6lgLeVQ995MoLPbvT8SvCE

https://www.instagram.com/rockfordashish/

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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