हिंदी साहित्य – कविता ☆ पेड़  की व्यथा! ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी न केवल हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रवीण हैं, बल्कि उर्दू और संस्कृत में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं.  हमने अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी की अतिसुन्दर मौलिक रचना   Anguish of the Tree! कल के अंक में प्रकाशित की है। आज प्रस्तुत है इसी कविता का हिंदी अनुवाद “पेड़  की व्यथा!” )

☆  पेड़  की व्यथा! ☆

 

आये हैं पेड़ काटने

कुछ लोग!

मगर,

है धूप बहुत तेज

तो, बैठे हैं उसकी छाँव में !

 

बोल पड़ा यूहीं

वो फलदार दरख़्त:

काटना क्या है?

मैं तो यूहीं

मर जाता इस ग़म में

कि बैठा नहीं कोई

मेरे अपने साये में…

 

असर चिलचिलाती धूप का

क्या जाने वो

जो रहते

हमेशा ठंडी छाँवों मेँ…!

 

तकलीफों का अंदाज़

उन्हें क्या

जो रहे नही कभी

उजड़े वीरानों में…!!

 

क्या है अहसास तुम्हे

अपनो के खोने का?

है अगर, तो मत कटने दो,

मैं भी तुम्हारा अपना ही हूँ

 

छाँव दूँगा,

फल दूँगा…

अपनों से भी बढ़कर

तुम्हारे अपनों का भी साथ दूँगा!

 

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, पुणे