सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता ☆ लापता… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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दर्द में लथपथ होकर
लगभग सभी ने
कविताएं लिखीं
युद्ध पर !
मैंने नहीं लिखी
क्या करती
लिखकर !
मदांध हाथियों के कान
नहीं सुनते
चींटियों का स्वर !
स्याही का रंग
रुचता नहीं उन्हें !
लहू की प्यास है
मर्मान्तक चीखों से
दहल उठी हैं
दिशाएं
ऐसे में
तरंगों पर सवार
अमन के एहसास
पहुंचाए हैं मैंने
उन पर लिखा है पता
उस इलाके का
जहां से इन्सानियत है
लापता
बस इतनी सी है
मेरी कविता !!
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈