हिंदी साहित्य – कविता / Poetry – ☆ विजय अवतरित सज्जनता ☆ – कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्
कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्
(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ के सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)
आज हम डॉ इन्दु प्रकाश पाण्डेय जी के सम्मान में कैप्टन प्रवीण जी के मित्र श्री सुमीत आनंद जी द्वारा रचित अङ्ग्रेज़ी कविता “The gentleman down the street” का हिन्दी भावानुवाद “विजय अवतरित सज्जनता…” प्रस्तुत कर रहे हैं।
संक्षिप्त परिचय:
डॉ इन्दु प्रकाश पाण्डेय जी का जन्म 4 अगस्त, 1924 को हुआ था। आप हिन्दी के समकालीन वरिष्ठ साहित्यकार हैं। आप जर्मनी के फ्रैंकफुर्त शहर में स्थित जॉन वौल्फ़गॉग गोएटे विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग से 1989 में अवकाश प्राप्त प्राध्यापक हैं।
श्री सुमीत आनंद जी के ही शब्दों में –
4 अगस्त 2019 को फ्रैंकफोर्ट (जर्मनी) में आदरणीय डॉ इन्दु इंदु प्रकाश पाण्डेय जी के 95 वें जन्मोत्सव पर उनके स्वस्थ, सक्रिय और सार्थक जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए मैंने “The gentleman down the street” शीर्षक से पाण्डेय जी के व्यक्तित्व की प्रच्छन्न विशेषताओं को उजागर करते हुए एक कविता लिखी थी. मेरे अनन्य मित्र और हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और उर्दू के मर्मज्ञ विद्वान् कैप्टन प्रवीण रघुवंशी ने मेरे अनुरोध करने पर इस कविता का हिंदी में अनुवाद किया है.
प्रसंगवश बताना चाहूँगा कि कैप्टन प्रवीण रघुवंशी ने हिंदी की कालजयी रचनाओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया है.
मुझे विश्वास है कि पाण्डेय जी के असंख्य हिंदी पाठक, प्रशंसक, इष्ट-मित्र और विद्यार्थी इसे पढ़कर एक बार फिर से उनके लिए शुभकामनाएँ अर्पित करेंगे.
– सुमीत आनंद
☆ विजय अवतरित सज्जनता… ☆
बस जैसे ही मैंने सोचा
कि अब शिष्टता मर चुकी है
वाक्पटुता भी मृतप्राय है
मौलिक भद्रता मरणासन्न है
तभी जीवन में सज्जनता स्वरूप
आपका आगमन हुआ…
आपका अपनी
जीवन की अनूठी कहानियों का,
अपने दीर्घ अनुभवों के
खज़ाने का द्वार मेरे लिए खोलना
और मुझे सिखाना
जीवन के छोटे-बड़े आनंद
का नित्य लुत्फ उठाना…
आपका
एक ज्योतिपुंज होना
प्रेमभाव से परिपूरित होना
और हम सभी को
इन्हीं ईश्वरीय भावों से ओतप्रोत करना…
जीवन को सम्पूर्णता से प्रेम करना
फिर भी हमेशा निर्लिप्त भाव में रहना
एक श्वेत कपोत की भांति अल्हड़, मस्त और पवित्र…
प्रत्येक दिन एक अपरिमित
उन्मुक्तता के साथ जीना
जीवन के तूफानों का
एक मुस्कान के साथ
एक फ़क़ीराना अंदाज़ में,
शांत व साहसी भाव से
निरंतर सामना करना…
जबसे जीवन में सज्जनता स्वरूप
आपका प्रादुर्भाव हुआ…
हर गुज़रता पल
हर गुज़रता वर्ष
ये अहसास दिलाता रहा कि
आपका शाश्वत सामीप्य
हमे प्रेम-विभोर कर रहा है…
निरंतर आशीष दे रहा है…
हिंदी अनुवादः प्रवीण रघुवंशी
The Original poem – ☆ The gentleman down the street ☆
Just when I thought
Chivalry is dead
Eloquence is dead
The basic goodness, is dead
Along came you
The gentleman down the street.
Opening your chest of treasure
Of all the life´s stories
Of all your experiences
And teaching me
To rejoice life´s little pleasures.
Carrying so much light and love
And infecting all with the same
Loving life to the fullest
Yet be so detached
Carefree and pure as a dove.
Living each day with a careless abandon
Braving through life´s storms
With a smile
With an audacity
alongside your brave but calm compassion.
With each passing year
Realising that you are there
To love us to bless us
You remain ever so dear
The gentleman down my street
– Sumeet Aanand