श्री प्रतुल श्रीवास्तव
☆23 मार्च को जन्म दिवस पर विशेष – शिक्षाविद, साहित्यकार ‘विदग्ध’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
(ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से गुरुवर प्रो.चित्रभूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” जी को उनके यशस्वी 95 वें जन्म दिवस पर सादर प्रणाम एवं हार्दिक शुभकामनाएं।)
संघर्ष-साधना से भरे सात्विक जीवन के साथ अध्ययन, चिंतन-मनन से प्राप्त परिपक्वता और आभा के तेज से जिनका मुखमंडल सदा दीप्त रहता है उन्हें हम सब कवि-साहित्यकार, अनुवादक, अर्थशास्त्री और शिक्षाविद प्रो.चित्रभूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” के नाम से जानते हैं । हिंदी, अर्थशास्त्र एवं शिक्षा में स्नातकोत्तर उपाधियां प्राप्त कर आपने साहित्य रत्न की उपाधि भी प्राप्त की । विभिन्न नगरों के विद्यालयों में अपनी विद्वता एवं अध्यापन कौशल से अपने सहयोगियों और छात्रों में विशिष्ट आदर व स्नेह के पात्र रहे प्रो. चित्रभूषण जी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 1, जबलपुर के संस्थापक प्राचार्य रहे हैं । वे प्रान्तीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से प्राध्यापक के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
1948 में देश की प्रतिष्ठित पत्रिका सरस्वती में विदग्ध जी की प्रथम रचना प्रकाशित हुई थी तब से आज तक देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं के प्रकाशन का सिलसिला जारी है । आकाशवाणी केन्द्रों एवं दूरदर्शन से भी उनकी रचनाओं का प्रसारण जब-तब होता रहता है । ईशाराधन, वतन को नमन, अनुगुंजन, नैतिक कथाएं, आदर्श भाषण कला, कर्मभूमि के लिए, बलिदान, जनसेवा, अंधा और लंगड़ा, मुक्तक संग्रह, समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार, मानस के मोती आदि उनकी चर्चित पुस्तकें हैं । प्रो.चित्रभूषण जी ने भगवतगीता, मेघदूतम एवं रघुवंशम के हिंदी अनुवाद के साथ ही संस्कृत एवं मराठी के अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का हिंदी अनुवाद किया है । सम सामयिक घटनाओं पर निर्भीकता से कलम चलाने वाले गांधीवादी साहित्यकार “विदग्ध”जी के प्रशंसकों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी भी शामिल थे । शिक्षा विभाग की अनेक समितियों में पदाधिकारी/सदस्य रहे प्रो.चित्रभूषण जी जबलपुर सहित जिन-जिन नगरों में सेवारत रहे वहां की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के माध्यम से प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का कार्य भी करते रहे । उन्होंने मंडला में रेडक्रॉस समिति की स्थापना की । छात्र जीवन में हॉकी एवं वालीबॉल के खिलाड़ी रहे विदग्ध जी नई पीढ़ी को संदेश देते हुए कहते हैं कि “नियमित एवं सादा जीवन मनुष्य को शारीरिक-मानसिक व्याधियों से दूर रखता है ।” वे गीता को धर्म विशेष का ग्रंथ न मान कर इसे समस्त मानव जाति का पथ प्रदर्शक मानते हैं । उनके अनुसार जीवन में क्या उचित, क्या अनुचित है यही गीता में बताया गया है ।
ज्ञान-साधना से प्राप्त अनुभवों को आजीवन उदारता पूर्वक समाज को वितरित करते रहने वाले प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” जी को उनके यशस्वी 95 वें जन्म दिवस पर सादर प्रणाम । वे स्वस्थ रहें और वर्षों-वर्षों तक हमें मार्गदर्शन व आशीर्वाद प्रदान करते रहें ।
– प्रतुल श्रीवास्तव
जबलपुर, मध्यप्रदेश
(आप प्रो.चित्रभूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित एक पूर्वप्रकाशित आलेख इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं 👉 प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व )
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈