श्री प्रतुल श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
आपकी साहित्यिक एवं संस्कृतिक जगत की विभूतियों के जन्मदिवस पर शोधपरक आलेख अत्यंत लोकप्रिय हैं। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है 85 वें जन्मदिवस पर आपका आलेख – न्याय के संस्कार और मीना भट्ट का सृजन।)
☆ जन्मदिवस विशेष – न्याय के संस्कार और मीना भट्ट का सृजन ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
(30 अप्रैल को जन्म दिवस पर विशेष)
जो व्यक्ति साहित्य, कला, संस्कृति से अथवा किसी भी तरह के सृजन से जुड़ जाता है उसमें न सिर्फ मानव समाज वरन समस्त जड़ – चेतन के लिए प्रेम भाव विकसित हो जाता है। आज हम बात कर रहे हैं सम्पूर्ण प्रकृति से प्रेम करने वाली जबलपुर की ऐसी साहित्य साधिका श्रीमती मीना भट्ट की जिन्होंने अपने सकारात्मक लेखन से सम्पूर्ण देश के साहित्य प्रेमियों के बीच अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।
छतरपुर के नौगांव में जन्मीं मीना भट्ट के पिताश्री स्व. हरिमोहन पाठक आबकारी अधिकारी रहे। माताश्री स्व. सुमित्रा पाठक धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। परिवार से प्राप्त उत्कृष्ट संस्कारों के बीच उच्च अध्ययन करने के उपरांत आपने न्यायिक सेवा प्रारंभ की। आपका विवाह भी न्याय सेवा कर रहे श्री पुरुषोत्तम भट्ट जी से हुआ। जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत्त होने के उपरांत आप डिविजनल विजलेंस कमेटी जबलपुर की चेयर पर्सन रहीं। परिवार के धार्मिक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक वातावरण और सत्यमेव जयते व तमसो मा ज्योतिर्गमय के भाव के साथ न्यायिक सेवाओं ने मीना जी का कुछ इस तरह निर्माण किया कि वे अत्याचार, अनाचार, बेईमानी, पक्षपात, असमानता, भेदभाव को देख तुरंत असहज हो उठती हैं किंतु इसके विपरीत सज्जनों, साहित्य कला संस्कृति, धर्म – अध्यात्म जैसे सकारात्मक कर्म से जुड़े लोगों के प्रति अत्यंत स्नेह व सम्मान रखती हैं।
श्रीमती मीना भट्ट की साहित्यिक यात्रा उनके प्रशासनिक और न्यायिक पदों पर रहते हुए ही हो चुकी थी। यद्यपि आपने गद्य सृजन भी किया है तथापि काव्य सृजन आपको प्रिय है। आपकी अनेक रचनाएं छंद युक्त हैं, आपने गजलें भी पूरी दक्षता से लिखी हैं। भक्ति, प्रकृति और प्रेम आपके प्रिय विषय हैं। 2016 में आपकी प्रथम पुस्तक “पंचतंत्र में नारी” प्रकाशित हुई फिर क्रमशः “पंख पसारे पंछी”, “एहसास के मोती” और “ख्याल – ए – मीना (ग़ज़ल संग्रह), “नैनिका” कुंडलिया संग्रह, “मीना के सवैया” एवं “निहारा” (गीत संग्रह) आदि प्रकाशित हुईं। इस बीच मीना जी ने अपने युवा पुत्र सिद्धार्थ भट्ट को खोने का गहन दुःख झेला जो उनकी कलम से बहता रहता है। मीना जी ने पुत्र की स्मृति को अक्षुण्य बनाने अपना उपनाम ही “सिद्धार्थ” रख लिया है। उन्होंने साहित्य कला संस्कृति के संरक्षण संवर्धन के लिए “सिद्धार्थ फाउंडेशन” नामक संस्था की स्थापना भी की है जो गति ग्रहण कर रही है। आपके छोटे पुत्र सौरभ और पुत्र वधु प्रीति सेवाभावी लोकप्रिय चिकित्सक हैं।
मीना जी ने अपना संपूर्ण जीवन अध्ययन,चिंतन – मनन, लेखन, समाज सेवा और प्रतिभाओं की खोज व उनके विकास के लिए समर्पित कर दिया है। इस पावन कार्य में उन्हें उनके पति श्री पुरुषोत्तम भट्ट का पूरा सहयोग प्राप्त होता है। आप साहित्यिक, सामाजिक गतिविधियों में सदा उदारता पूर्वक सहयोग करते हैं। मीना जी को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों पर विद्या सागर सम्मान, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन का महिला रत्न अलंकरण व नगर और देश की अनेक संस्थाओं के सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। उनकी कलम निरंतर चलती रहे। आज श्रीमती मीना भट्ट जी के जन्म दिवस पर उनके स्नेहियों, परिचितों, प्रशंसकों की ओर से उनके स्वस्थ, सुदीर्घ, यशस्वी जीवन की अनंत शुभकामनाएं।
श्री प्रतुल श्रीवास्तव
संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈