श्री सुरेश पटवा

☆ पुस्तक चर्चा  ☆ “कामदेव खंडकाव्य” – सुश्री ऊषा सक्सेना ☆ चर्चाकार – श्री सुरेश पटवा ☆

पुस्तक: कामदेव खंडकाव्य

लेखिका: ऊषा सक्सेना

प्रकाशक: अस्मि प्रकाशन भोपाल

मूल्य: 200/-

समीक्षक: सुरेश पटवा

भारतीय वांग्मय साहित्य मिथकीय चरित्रों का ख़ज़ाना है। जितनी विविधता भारतीय पौराणिक कथाओं में मिलती है उतनी विश्व की किसी सभ्यता में नहीं है। वेदों में प्रकृति के चरों अर्थात् सूर्य, सविता, इंद्र, रुद्र की अभ्यर्थना है। उपनिषदों में दार्शनिक सिद्धांत बिखरे हैं। सिद्धांतों का क़िस्सों-कहानियों के माध्यम से व्यक्तिकरण पुराणों का विषय रहा है।

जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है। “खण्ड काव्य’ शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है। जिसमें नायक या नायिका का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित्र के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खण्ड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है। कामदेव के जीवन की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना को लेकर यह खंड काव्य रचा गया है। संस्कृत साहित्य में खंडकाव्य की एकमात्र परिभाषा साहित्य दर्पण में उपलब्ध है वह इस प्रकार है-

भाषा विभाषा नियमात् काव्यं सर्गसमुत्थितम्।
एकार्थप्रवणै: पद्यै: संधि-साग्रयवर्जितम्।
खंड काव्यं भवेत् काव्यस्यैक देशानुसारि च।

इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है। वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है।

तदनुसार हिंदी के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो।

वस्तुत: खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो; कथा में एकांगिता (साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता) हो तथा कथाविन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंधकाव्य को खंडकाव्य माना जाता है।

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्धांतों का व्यावहारिक पहलू कथाओं में पिरोकर पुराणों में अभिव्यक्त हुआ है। श्रीमति उषा सक्सेना जी ने इनमे से एक पुरुषार्थ “काम” पर खंड काव्य लिखने का साहसी कार्य किया है। वे अनादि शिव-शक्ति के वैयक्तिक पूजनीय स्वरूप शिव-पार्वती को सृष्टि हेतु मिलाकर शिव पुत्र कार्तिकय से तारकासुर राक्षस का वध कराने की कहानी के माध्यम से काम को भस्म करवाती हैं। फिर अनंग रूप में स्थापित करवाती हैं। लेखिका की सनातन धार्मिक साहित्य पर पकड़ काव्य धारा को विचलित नहीं होने देती है। कथा अविचल चलती है। उनकी सरस कविताओं में सरल प्रवाह है। यह तब ही सम्भव है जब रचनाकार की विषय पर पकड़ हो। शैली सपाट और बोधगम्य है। कहीं दुरूहता नहीं नज़र आती।

श्रीमती उषा सक्सेना जी को इस खंड काव्य की रचना एवं प्रकाशन हेतु हार्दिक बधाई। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उनकी इस कृति को साहित्य रसिकों का प्रतिसाद अवश्य मिलेगा।

सुरेश पटवा

(लेखक, विचारक, उपन्यासकार, समीक्षक कवि)

भोपाल,  मध्यप्रदेश। मो 9926294974

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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