सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार  : व्ही शांताराम पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 15 ☆ 

☆ व्ही शांताराम…2 ☆

इन परिस्थितियों में शांताराम और जयश्री के सम्बंध इतने बिगड़ गए कि उनका 13 नवम्बर 1956  को तलाक़ हो गया और शांताराम ने संध्या से 22 दिसम्बर 1957 को शादी कर ली।

संध्या से शादी के पहले शांताराम ने परिवार नियोजन ऑपरेशन करा लिया था और यह बात संध्या को बता दी थी, इसके बावजूद भी संध्या ने शांताराम की दूसरी पत्नी बनना स्वीकार किया था। वह शांताराम के पहली दो बीबियों से उत्पन्न सात बच्चों को सगी माँ सा प्यार करती थी और राजश्री को फ़िल्मों में केरियर बनाने में मदद करती रहीं। विमला बाई भी संध्या को छोटी बहन सा प्यार देती थी।

‘दो आंखें, बारह हाथ’ वी. शांताराम द्वारा निर्देशित 1957 की हिंदी फिल्म है, जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया। उसे हिंदी सिनेमा के क्लासिक्स में से एक माना जाता है और यह मानवतावादी मनोविज्ञान पर आधारित है। इसने 8वें बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बीयर और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर निर्मित सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए नई श्रेणी सैमुअल गोल्डविन इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड में गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता।  यह फिल्म लता मंगेशकर द्वारा गाए और भरत व्यास द्वारा लिखित गीत “ऐ मल्लिक तेरे बंदे हम” के लिए भी याद की जाती है।

फिल्म ” ओपन जेल ” प्रयोग की कहानी से प्रेरित थी। सतारा के साथ औंध की रियासत में स्वतंत्रपुर सांगली जिले में अटपदी तहसील का हिस्सा है। इसे पटकथा लेखक जीडी मडगुलकर ने वी शांताराम को सुनाया था। 2005 में, इंडिया टाइम्स मूवीज ने फिल्म को बॉलीवुड की शीर्ष 25 फिल्मों में रखा था।  फिल्मांकन के दौरान वी शांताराम ने एक बैल के साथ लड़ाई में  एक आँख में चोट आई, लेकिन उसकी रोशनी बच गई।

उन्होंने फिल्म में एक युवा जेल वार्डन आदिनाथ का किरदार निभाया है, जो सदाचार के लोगों को पैरोल पर रिहा किए गए छह खतरनाक कैदियों का पुनर्वास करता है। वह इन कुख्यात, अक्सर सर्जिकल हत्यारों को ले जाता है और उन्हें एक जीर्ण देश के खेत पर उनके साथ कड़ी मेहनत करता है, उन्हें कड़ी मेहनत और दयालु मार्गदर्शन के माध्यम से पुनर्वास करता है क्योंकि वे अंततः एक महान फसल पैदा करते हैं। फिल्म एक भ्रष्ट शत्रु के गुर्गों के हाथों वार्डन की मौत के साथ समाप्त होती है, जो उस लाभदायक बाजार में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं चाहता है जिसे वह नियंत्रित करता है।

यह फिल्म दर्शकों को कई दृश्यों के माध्यम से ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ दर्शक मजबूत नैतिक सबक निर्धारित करते हैं कि कड़ी मेहनत, समर्पण और एकाग्रता के माध्यम से एक व्यक्ति कुछ भी पूरा कर सकता है। साथ ही, यह फिल्म बताती है कि यदि लोग अपनी ऊर्जा को एक योग्य कारण पर केंद्रित करते हैं, तो सफलता की गारंटी होती है।

 

उन्हें झनक-झनक पायल बाजे के लिए 1957 में बेस्ट फ़िल्म, 1958 में दो आँखे बारह हाथ के लिए बेस्ट फ़िल्म अवार्ड मिला था। 1985 में दादा साहब फाल्के अवार्ड और 1992 में मृत्यु उपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी स्मृति में 2001 में डाक टिकट जारी किया गया था। भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने मिलकर  V. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation स्थापित किया है जो प्रतिवर्ष 18 नवम्बर को व्ही शांताराम अवार्ड देता है। शांताराम की मृत्यु 30 अप्रेल 1990 को बम्बई में हुई। वे अंतिम समय में कोल्हापुर के निकट पनहला में बस गए थे। वे जिस घर में रहते थे उसे उनकी बेटी सरोज ने अब होटल में तब्दील कर दिया है।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

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