श्री सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  महान फ़िल्मकार : महबूब ख़ान पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 16 ☆ 

☆ महान फ़िल्मकार : महबूब ख़ान ☆

फिल्म निर्देशक महबूब खान का जन्म 9 सितंबर, 1907 को गुजरात में स्थित तत्कालीन बड़ौदा रियासत के गंदेवी तालुक़ा के नज़दीक बिलिमोड़ा बस्ती में हुआ था. महबूब पढ़े-लिखे व्यक्ति नहीं थे, लेकिन जीवन की पाठशाला में उन्होंने ऐसे नायाब सबक सीखे कि उनकी फिल्में तात्कालिक समाज का दर्पण और सदाबहार स्वस्थ मनोरंजन का पर्याय बन गईं। हमेशा कुछ नया करने की जिद ने उन्हें फिल्म निर्माण से जुड़े हर पक्ष पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि उनकी मदर इंडिया, अंदाज, अनमोल घड़ी, अनोखी अदा, आन, अमर जैसी फिल्मों में एक कसावट नजर आती है।

अपनी अद्भुत कला के माध्यम से उन्होंने भारतीय सिनेमा का परिचय विदेश से करवाया. मदर इंडिया फिल्म को भला कौन भूल सकता है। इस फिल्म ने ऑस्कर तक का सफर तय किया। फिल्म अवॉर्ड लेने में तो सफल नहीं रही मगर फिल्म ने भारतीय सिनेमा के लिए चुनौती पूर्ण मापदंड तय करके  निर्माताओं को नई दिशा जरूर दिखाई। निर्देशक महबूब खान ने 30 साल के करियर में कुल 24 फिल्मों का निर्देशन किया था, मदर इंडिया इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा में रही।

बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि महबूब खान को निर्देशक नहीं बल्कि एक एक्टर बनने का शौक था. 16 साल की उम्र में वे घर से भागकर एक्टिंग करने के लिए मुंबई आ गए थे। सिनेमा के रुपहले परदे से सम्मोहित मेह्बूब ने कम उम्र में ही बंबई की राह ले ली। अपने समय के अधिकतर फिल्मकारों की तरह महबूब ने भी विभिन्न स्टूडियो में संघर्ष कर फिल्म निर्माण की कला को समझा। मगर जब उनके पिता को इस बारे में पता चला वे महबूब को वापस घर ले आए। मेह्बूब जब 23 साल के हुए तब फ़िल्म उद्योग को घोड़े प्रदान करने का कारोबार करने वाले नूर अली मुहम्मद शिपरा, उनको घोड़े की नाल लगाने और घुड़साल की देखभाल के लिए बम्बई ले आए।

दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के निर्देशक चंद्रशेखर एक दिन घोड़ों को लेकर फ़ाइटिंग दृश्य फ़िल्मा रहे थे तब मेह्बूब उनकी सहायता करते हुए घोड़ों को सम्भाल रहे थे। उन्होंने फ़ुरसत के क्षणों में महबूब से फ़िल्मों में काम करने के बारे में पूछा तो महबूब ने रूचि दिखाई। उन्होंने नूर अली मुहम्मद शिपरा की अनुमति से महबूब को ले गए। एक दिन चंद्रशेखर फ़िल्म का निर्देशन कर रहे थे, महबूब ने साथ काम करने की इच्छा जताई जिस पर उन्हें डायरेक्टर की रजामंदी भी मिल गई। मगर भूमिका बहुत छोटी थी। इसके बाद धीरे-धीर उन्हें सपोर्टिंग रोल्स ही मिले।

ये बात मूक फ़िल्मों के दौर की है। जब भारत में पहली बोलती फिल्म आलम आरा बन रही थी तो फिल्म के निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने मुख्य भूमिका के लिए महबूब खान को ही लिया था मगर बात कुछ खास बनी नहीं। तमाम लोगों ने अर्देशिर को कहा कि पहली सवाक् फिल्म है, इसमें ज्यादा नए कलाकार को  लेना ठीक नहीं है. इसके बाद फिल्म में विट्ठल ने वह भूमिका निभाई। उन्होंने पहले महबूब प्रडक्शन बनाया बाद में बांद्रा में महबूब स्टूडीओ स्थापित करके अनमोल घड़ी, औरत, अन्दाज़, आन और अमर फ़िल्मे बनाईं।

आन 1952 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। इस फ़िल्म में अन्य साथी कलाकारों के साथ हिन्दी सिनेमा के अभिनेता दिलीप कुमार ने प्रमुख भूमिका निभायी थी। उन दिनों भारत की पहली टेक्नीकलर फ़िल्म ‘आन’ की आउटडोर शूटिंग का ज्यादातर हिस्सा नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश और इसके आसपास के इलाकों में फ़िल्माया गया था। फ़िल्म सन 1949 में बननी शुरू हुई थी और सन 1952 में रिलीज़ हुई थी। इसमें नरसिंहगढ़ का क़िला, जलमंदिर, कोटरा के साथ देवगढ़, कंतोड़ा, रामगढ़ के जंगल, गऊघाटी के हिस्सों में फ़िल्म के बड़े हिस्से को शूट किया गया था। फ़िल्म को देश के पहले शोमैन महबूब ख़ान ने बनाया था। जिनकी सन 1957 में रिलीज क्लासिक फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ विश्व सिनेमा के इतिहास का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। फ़िल्म में दिलीप कुमार, नादिरा, निम्मी, मुकरी, शीलाबाज, प्रेमनाथ, कुक्कू, मुराद ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थीं।

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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