सुरेश पटवा
((श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आजकल वे हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना स्वीकार किया है जो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के चरित्र अभिनेता : नज़ीर हुसैन पर आलेख ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 3☆
☆ हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के चरित्र अभिनेता : नज़ीर हुसैन ☆
नज़ीर हुसैन भारतीय फ़िल्म उद्योग के एक नामी चरित्र अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक थे, जिन्होंने 500 से अधिक हिंदी फ़िल्मों में काम किया था। उनका जन्म 15 मई 1922 को ब्रिटिश इंडिया के संयुक्त प्रांत में स्थित ग़ाज़ीपुर ज़िले के उसिया गाँव में एक रेल्वे ड्राइवर शाहबजद ख़ान के घर हुआ था। वे भोजपुरी फ़िल्मों के पितामह माने जाते हैं।
उनका लालन पालन लखनऊ में हुआ था, उन्होंने कुछ समय रेल्वे में फ़ायरमेन की नौकरी भी की थी फिर ब्रिटिश आर्मी में भर्ती होकर दूसरे विश्वयुद्ध में हिस्सा लेने सिंगापुर और मलेशिया में पदस्थ रहे जहाँ उन्हें जापानी फ़ौज ने बतौर युद्धबंदी गिरफ़्तारी में रखा था। वे सुभाष चंद्र बोस के प्रभाव से आज़ाद होकर इंडीयन नेशनल आर्मी में भर्ती होकर रंगून होते हुए कलकत्ता पहुँच गए। कलकत्ता में स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता होने से उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा हासिल हुआ था।
आज़ादी के उपरांत उन्हें बी एन सरकार के न्यू थिएटर में नौकरी मिल गई। उन्होंने विमल रॉय के सहायक के तौर पर काम करते हुए इंडीयन नेशनल आर्मी के अनुभवों से प्रेरित “पहला आदमी” फ़िल्म की न सिर्फ़ पटकथा लिखी अपितु उसमें काम भी किया। फ़िल्म के 1950 में प्रदर्शन के साथ ही नज़ीर हुसैन पर कामयाब कलाकार का ठप्पा लग गया और वे विमल रॉय की सभी फ़िल्मों के हिस्से बने।
दो बीघा ज़मीन, देवदास और नयादौर के बाद वे मुनीम जी फ़िल्म से देवानंद और एस डी बर्मन की टीम के हिस्से बन कर पेइंग गेस्ट से लेकर देवानंद की सभी फ़िल्मों में भूमिकाएँ अदा कीं। उन्होंने दिलीप कुमार, राजकपूर, देवानंद और राजेंद्र कुमार से लेकर राजेश खन्ना तक सभी नायकों के साथ काम किया।
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने नज़ीर हुसैन को बुलाकर भोजपुरी भाषा में फ़िल्म बनाने की सम्भावना तलाशने को कहा। उन्होंने “गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ईवो” “हमार संसार” और “बलम परदेशिया” नामक फ़िल्मों का निर्माण करके भोजपुरी फ़िल्मों की शुरुआत की, वे भोजपुरी फ़िल्मों के पितामह कहे जाते हैं।
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश