श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध किया था और यह अंतिम कड़ी है।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # ग्यारह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

 

हम जब नर्मदा की द्वितीय यात्रा पर चले तो मन में श्रद्धा और भक्ति के साथ साथ कुछ सामाजिक सरोकारों को पूरा करने की इच्छा भी थी। हमने तय किया था कि रास्ते में पड़ने वाले विद्यालयों में छात्र छात्राओं से गांधी चर्चा और चरित्र निर्माण की चर्चा करेंगे। हम अपने अनुभवों से उन्हें शैक्षणिक उन्नति हेतु मार्गदर्शन देने का प्रयास करेंगे।स्कूलों में गांधी साहित्य की पुस्तकें यथा रचनात्मक कार्यक्रम, मंगल प्रभात, रामनाम और आरोग्य1 की कुंजी बाटेंगे। किसी एक आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों की कविता संग्रह ‘अनय हमारा’ भेंट करेंगे।बरमान घाट पर हम सभी सहयात्री अपने अपने पुरखों की स्मृति में दो दो पौधे रोपेंगे।आम जन को कूरीतियों के बारे में चेतायेंगे।

वेगड़ जी की किताब से हमने घाट की सफाई का प्रण लिया तो श्री उदय सिंह टुन्डेले के आग्रह पर गांवों में छुआ-छूत की बुराई को समझने का प्रयास भी किया।

हमारे समूह के लोग अलग-अलग विचारों के हैं, आप कह सकते हैं कि यह heterogeneous समूह है।

प्रयास जोशी, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स से सेवानिवृत्त 67 वर्षीय कवि है और भावुकता से भरे हुए हैं। शायद ट्रेड यूनियन गतिविधियों से जुड़े रहे होंगे। उनकी रुचि महाभारत और मानस की कथा सुनने सुनाने में नहीं है। पटवाजी को पुराणादि की कहानियां सुनाने में आन्नद का अनुभव होता है। जोशी जी मानते हैं कि रामायण-महाभारत की कहानियां रोजगारपरक नहीं हैं। वे गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम के हिमायती हैं। जब कभी मैं स्कूली बच्चों के साथ गांधी चर्चा करता हूं जोशीजी मेरे बगल में बैठ कुछ न कुछ जोड़ते हैं। तेहत्तर वर्षीय  जगमोहन अग्रवालजी के पिता स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे, अपने गांव कौन्डिया के सरपंच रहे और गांधीजी के सिद्धांतों के अनुसार गांव के विकास में संलिप्त रहे। पर जगमोहन अग्रवाल को संघ की विचारधारा अधिक आकर्षक लगती हैं। अनेक बार वे गांधीजी की आलोचना करने लगते हैं पर तर्कों का अभाव उन्हें चुप रहने विवश कर देता है। श्री अग्रवाल बवासीर से पीड़ित हैं फिर भी यात्रा कर रहे हैं। यह कमाल शायद अमृतमयी नर्मदा पर गहरी आस्था का परिणाम है‌। मां नर्मदा की कृपा से उनकी इस व्याधि के कारण हमारी यात्रा में विचरने न पड़ा। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त अविनाश दवे मेरे हम उम्र हैं। उनके पिता, स्व नारायण शंकर दवे, त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस की सेवा में थे तो दमोह निवासी ससुराल पक्ष के लोग गांधीजी की विचारधारा विशेषकर खादी ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने वाले।गांधी साहित्य से मेरा पहला परिचय अविनाश के स्वसुर स्व ज्ञान शंकर धगट के निवास पर ही हुआ था। मुंशीलाल पाटकर पेशे से एडव्होकेट सबकी सहमति से चलते हैं और मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कभी कभी लगता है कि सुरेश पटवा और मुंशीलाल पाटकार  के बीच गुरु शिष्य सा संबंध है। पटवा जी तो बैंक में आने से पहले पहलवान थे अतः शिष्य बनाने में उन्हें महारत हासिल है। ग्रामीणों के बीच उन्हीं के तौर-तरीकों से बातचीत करने में वे निपुण हैं। कभी कभी वे लट्ठ घुमाकर सबका मनोरंजन भी करते रहते हैं।

हम सबने मतवैभिन्य के साथ  निष्काम भाव से यह यात्रा आंनद के साथ संपन्न की। यात्रा के दौरान लोगों से हमें भरपूर स्नेह मिला। कहीं हमें बाबाजी तो कहीं मूर्त्ति का संबोधन मिला। हम अनायास ही लोगों के बीच श्रद्धा का पात्र बन गये। जबकि हमारी यात्रा तो मौज-मस्ती से भरी हुई उम्र के इस पड़ाव का एडवेंचर ही है।

हमें नर्मदा तट पर केवल करहिया स्कूल में जाने का अवसर मिला क्योंकि शेष गांव तट से दूर थे या सुबह सबेरे निकलने की वजह से स्कूल बंद। फिर भी जहां कहीं अवसर मिला गांधी चर्चा हुई। गांव के लोग आज भी गांधीजी को जानते हैं, मानते हैं वे श्रद्धा रखते हैं। बापू का नाम सुन उनकी आंखों में चमक आ जाती है। अविनाश ने प्रायमरी स्कूल के बच्चों से राजीव गांधी की फोटो दिखाकर पूंछा क्या यह गांधीजी हैं, बच्चों ने ज़बाब दिया नहीं गांधी जी आपके पर्स में हैं। छुआ-छूत तो अभी भी है। बस यह है कि अब दलित असहजता महसूस नहीं करते। प्रदूषण कम है, नर्मदा जल साफ है पर खतरा तो है। शिवराज सिंह ने  नमामि देवी नर्मदे यात्रा की थी,  उम्मीद जागी कि नर्मदा प्रदूषण से बचेगी, नर्मदा पथ का निर्माण होगा, पेड़ पौधे लगेंगे, गांव बाह्य शौच से मुक्त होंगे, स्वच्छता कार्यक्रम, जैविक खेती बढ़ेगी तो गांवों में खुशहाली जल्द ही देखने को मिलेगी। यात्रा पूरी हुये अरसा बीत गया। कहीं पेड़ पौधे लगे नहीं दिख रहे हैं। नर्मदा में रेत उत्खनन तो अब पहले से ज्यादा हो रहा है, इसलिए शायद गांव के  लोगों को नमामि देवी नर्मदे यात्रा की बातें बेमानी लगने लगी हैं। तट की सफाई को लेकर जागरूकता कुछ ही लोगों में दिखी। हमें सफाई करता देख कोई आगे न आया बस हमारी प्रसंशा कर वे आगे बढ़ गये। रासायनिक खाद का प्रयोग करते किसान न दिखे पर कीटनाशकों का छिड़काव होता कहीं कहीं दिखाई दिया तो कहीं उसकी गंध ने हमें परेशान भी किया। यद्यपि घरों में शौचालय बने हैं तथापि तट पर खुले में शौंच आज भी जारी है। वृक्षारोपण तो अब शायद सरकार की जिम्मेदारी रह गई है। आश्रम में पेड़ लगे हैं लेकिन गांव के टीले, डांगर वृक्ष विहीन हैं। शासन और आश्रम  अगर परिक्रमा मार्ग में नर्सरी संचालित करें तो शायद वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलेगा। कुल मिलाकर नौ दिवसीय यह एक सौ पांच किलोमीटर की यात्रा कहीं-कहीं आशा का संचार भी करती है तो दिल्ली और भोपाल से आती खबरें मन को उत्साहित नही करती। हमारी यात्रा के दौरान ही अयोध्या पर फैसला आया लेकिन कहीं भी हमें अतिरेक न दिखा। शांति सब चाहते हैं। यह सूकून देने वाली बात है।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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