हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # चार ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक
श्री अरुण कुमार डनायक
(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से आप तक पहुंचाई । हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।
श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ? आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )
ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं।
☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # चार ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆
08.11.2019 सुबह सबेरे सात बजे हम सब छोटी गंगई से आगे बढ़े। छोटी के बाद बड़ी गंगई आती है पर बीच में मुआर घाट है। पक्का घाट था सो यहां हम लोगों ने स्नान किया, चना चबैना खाया और कोई एक घंटे विश्राम भी किया। घाट पर आठ दस स्कूली बच्चे धमा चौकड़ी मचा रहे थे। पटवा जी ने मजाकिया लहजे में उन्हें छेड़ा तो वे सब खिंचे चले आए, हमारे इर्द-गिर्द जमा हो गये। बतियाते बतियाते उनसे अपनी अपनी पानी की बोतल भरने का आग्रह किया और वे हंसते हुए हैंडपंप से भर लाये।
हमने उनसे गांधी जी के बारे में पूंछा और फिर गांधी जीवनी सुनाई। बच्चों को गांधी बाबा के बारे में काफी जानकारी थी उन्होंने हमारे कतिपय प्रश्नों के सटीक उत्तर भी दिए। मैंने सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्र को गांधी जी की पुस्तक मंगल प्रभात पढ़ने भेंट की।यह सभी बच्चे जमुनिया गांव के हैं और बेनी प्रसाद सिलावट, अजमेर , कमला बाई, धना बाई, गोमती बाई जो सब आपस में रिश्तेदार हैं, बेनी प्रसाद के पुत्र को सरपंच के चुनाव में सफलता मिलने के कारण परिक्रमा उठा रहे हैं, के भोज कार्यक्रम में सम्मिलित होने आये हैं। मुआर घाट का पौराणिक महत्व है। यहीं भैंसासुर का वध हुआ था और राजा मयुरेश्वर के नाम पर ही इसका नाम मुआर घाट हो गया।
बड़ी गंगई के आगे चले तो बेलखेड़ी घाट और तट के उस पार सामने जालौन घाट दिखाई दिया। आज एकादशी है तो जगह जगह घाटों पर लोग स्नान के लिए उमड़ रहे हैं। अनेक घाटों से परिक्रमा उठाने का पूजन हो रहा है और बहुसंख्य लोग पंचकोसी परिक्रमा करते दिखाई दिए। आगे बढ़ते हुए हमने अनेक स्थानों पर विसर्जित मूर्तियों के अवशेष देखे। गनीमत है कि मूर्तियां मिट्टी से बनी थी अतः मिट्टी तो नर्मदा में समाहित हो गई पर बांस, पयार, रस्सी आदि नदी ने अस्वीकार कर तट पर बाहर फेंक दी। मोटर साइकिल धोने वाले भी बहुत मिले।
ब्रह्म कुंड से कोई दो किलोमीटर पहले दूभा घाट है यहां मशीनों से रेत खनन का काम हो रहा था। हमारी सौ किलोमीटर की यात्रा में केवल यहीं हमने पोकलेन मशीन का प्रयोग देखा। नदी को बुरी तरह खोदा जा रहा है और उत्खनित रेत के ढेर जगह जगह लगा दिए गए हैं। रेत के यह ढेर बांध का एहसास कराते हैं ,ऐसा होने से जल प्रवाह में बाधा आ रही है। अनेक जगह मल्लाह भी बीच नदी से रेत निकालने के काम में संलग्न हैं पर इस विधि से रेत खनन उतना नुकसान दायक नहीं है जितना मशीनों के प्रयोग से है।
ब्रह्म कुंड पहुंचने के पहले ही दिवाकर अस्त हो चले, रक्ताभ रवि रश्मियां नर्मदा से ऐसी घुल मिल गई की सम्पूर्ण जलराशि स्वर्णिम हो गई। इस दिन कोई 18 किलोमीटर की यात्रा कर थकान से चूर चूर हो ब्रह्म कुंड पहुंचे इसे बरम कुंड भी कहते हैं। रात में कुटी में रुके। रामप्रसाद लोधी ठाकुर इसे संचालित करते हैं उनकी पत्नी पुद्दा बाई लकवा ग्रस्त हैं तीन साल से पति ही बीमार पत्नी की सेवा करते हैं। कुटी में जगह बहुत है पर सब कुछ बेतरतीब है।कुटी की दीवाल पर ‘नदि नहीं ये जननी है। रक्षा हमको करनी है।’ नारा लिखा देखा। दिसम्बर 16से भी 17के दौरान तत्तकालीन भाजपा सरकार ने नमामि देवि नर्मदे सेवा यात्रा का बहुचर्चित आयोजन किया था उसी दौरान ऐसे नारे लिखे गये थे। तब शिवराज सिंह चौहान भी यहां आये थे। प्रहलाद सिंह पटेल के स्वागत का बोर्ड दिखा। वे इसी क्षेत्र के निवासी हैं और केन्द्र में पर्यटन मंत्री, चाहें तो परिक्रमा पथ की व्यवस्थाओं में सुधार कर सकते हैं।
रात के भोजन की व्यवस्था, गांव के पुजारी, मनोज पाराशर ने कर दी, वे हमें ब्रह्म घाट पर ही मिल गये थे और थोड़ी देर में कुटी आ गये। आलू की सब्जी और रोटी वे अपने घर से बनवा लाये।यहां हमारी मुलाकात टीका राम गौंड परकम्मा वासी से फिर हो गई।
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39
(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं एवं गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )