हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # आठ ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक
श्री अरुण कुमार डनायक
(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से आप तक पहुंचाई । हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।
श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ? आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )
ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं।
☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # आठ ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆
12.11.2019 आज कार्तिक पूर्णिमा है और हम गरारू घाट पर हैं, कहते हैं कि इसी घाट पर गरुड़ ने तपस्या की थी।
सुबह-सुबह उठकर गांव की ओर निकल गये दो पुराने मंदिरों का अवलोकन किया। शिव मंदिर इन्डो परसियन शैली में मकबरानूमा इमारत है। इसे सम्भवतः चौदहवीं पन्द्रहवीं सदी में गौड़ राजाओं ने बनवाया था और बाद में सत्रहवीं शताब्दी में गौड़ नरेश बलवंतसिंह ने इनका जीर्णोद्धार किया। चौकोर गर्भगृह में शिव पिंडी विराजित है। दूसरा गरुड़ मन्दिर मूर्त्ति विहीन है। यह इन्डो इस्लामिक शैली में बना है। इसका भी जीर्णोद्धार राजा बलवंतसिंह ने कराया था। हमने, पाटकर जी व अविनाश ने मंदिर में फैले कचरे को साफ करने की एक कोशिश की।
लौटकर आए तो पंडाल में कथा व्यास सुन्हैटी के पं ओम प्रकाश शास्त्री मिल गये। उनसे हमें ज्ञात हुआ कि नर्मदा पुराण कथा सबसे पहले मार्कंडेय ऋषि ने पांडवों को सुनाई थी। गरारु घाट पर कार्तिक पूर्णिमा पर मड़ई मेला भरता है। दुकानदारों के बीच आपस में दुकान की जगह को लेकर वाद विवाद होता है पर शीघ्र मेल-मिलाप भी हो जाता है। वे सब वर्षों से उसी जगह पर दुकान लगाते हैं। सरस्वती बाई कोरी, जमुना चौधरी की जनरल स्टोर्स की, तो दशरथ अग्रवाल की मिठाई दुकान है वे कागज में मिठाई देते हैं। अंकित पटवा और अन्य की मनिहारी की दुकान।
आगे बढ़े नर्मदा के तीरे तीरे चलते बम्हौरी गांव पहुंचे। वहां से गांव के अंदर होते हुए दोपहर को केरपानी पुल के पास पहुंचे। केरपानी गांव नर्मदा के उत्तरी तट पर है। दूर से ही एक किले के भग्नावशेष दीखते हैं। यह किला पिठौरा गांव के शासक मंगल सिंह गौड़ ने केरपानी पर आक्रमण उपरांत बनाया था। यहां केरपानी गांव के दो लोग भूपत सेन और कनछेदी लाल नौरिया परिक्रमा उठा रहे हैं। कनछेदी लाल तो चौथी बार परिक्रमा कर रहे हैं और पांचवीं परिक्रमा की आशा करते हैं।
हमने पूरे कर्मकांड को ध्यान से देखा। मुंडन उपरांत गणेश पूजन, नवग्रह पूजन, नर्मदा जल , शंकरजी आदि का पूजन हुआ, नर्मदा को झंडा चढ़ाया गया। मां नर्मदा की आरती गाई “ॐ जय जगदानंदी, मैया जय आनंदकंदी, ब्रह्मा-हरि-हर-शंकर, रेवा हरि हर शंकर, रुद्री पालन्ती।।” फिर कन्या भोजन हुआ तत्पश्चात ग्रामीणों के साथ हम सबने दाल, बाटी, भरता, सूजी हलुआ का भोग लगाया। सभी ने दोनों परकम्मावासियों को रुपये नारियल से विदाई दी। दोनों के परिवारों के लोगों ने अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई दी। ग्रामीणों ने दोने पत्तल एकत्रित कर उसमें आग लगा दी। नदी को प्रदूषणमुक्त रखने की कोशिश सराहनीय है। यहां प्रभुनारायण गुमास्ता मिले। बताते हैं कि गुमास्ता, लिखा-पढ़ी के काम की एवज, अंग्रेजी शासन से मिली पदवी है।
यहां से हमारे साथी प्रयास जोशी भोपाल चले गए और हम पांच नदी के तीरे तीरे चलकर समनापुर पहुंचे। कार्तिक पूर्णिमा के स्नान हेतु नरसिंहपुर जिले के विभिन्न स्थानों से लोग आये थे घाट पर भीड़ थी और नदी का प्रवाह धीमा और शांत था। पास ही श्री श्री बाबाश्री जी का आश्रम था। यहां रात्रि विश्राम तय किया। बाबाश्री के सेवक को परिचय देते हुए पटवाजी के मुंह स्टेट बैंक का पदनाम निकल गया। बाबाश्री के सेवक ने फौरन टोका आप मां नर्मदा के परिक्रमावासी हैं और यही आपकी पहचान है।
शाम को निर्विकारेश्वर महादेव की आरती में सम्मिलित होने मंदिर गये तो नर्मदा की कल-कल ध्वनि सुनाई दी। लगा कि मां अपने पुत्रों को सुलाने मधुर कंठ में धीमे-धीमे लोरी सुना रही है। रात कोई नौ बजे सेवक आरती से फुर्सत हुए और फिर हम सबने खिचड़ी का सेवन कर रात्रि विश्राम इसी आश्रम में किया।
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39
(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं एवं गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )