(राजभाषा मास में हम ख्यातिलब्ध मराठी साहित्यकार सुश्री प्रभा सोनवणे जी की हिंदी कविता को प्रकाशित कर अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं. ई-अभिव्यक्ति में आपका मराठी में प्रकाशित साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” को पाठकों का ह्रदय से प्रतिसाद मिल रहा है. आपकी कवितायेँ अत्यंत संवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी होती हैं. अक्सर मैं उनकी ह्रदय स्पर्शी कवितायेँ पढ़ कर प्रत्युत्तर में निःशब्द अनुभव करता हूँ . आज प्रस्तुत हैं उनकी एक और हृदयस्पर्शी हिंदी कविता पुरानी तस्वीरें . यह सच है क़ि हम अक्सर पुरानी तस्वीरें देख कर उस गुजरे वक्त में पहुँच जाते हैं, जहाँ इस जीवन में पुनः जा पाना असंभव है. उन तस्वीरों के कुछ पात्र तो समय के साथ खो गए होते हैं. हमारे पास रह जाती हैं मात्र स्मृतियाँ. समय के साथ जीना हमारी नियति है और शेष ईश्वर के हाथों में है. इस अतिसुन्दर रचना के लिए उनकी लेखनी को नमन. )
☆ पुरानी तस्वीरें ☆
आज पुरानी तस्वीरें भेजी,
WhatsApp Group पर भाँजे ने….
तो गुजरा हुआ जमाना याद आया ।
कितने सीधे सादे दिन थे,
सीधे सादे लोग,
वह बहुत बडा बुलंद सा घर आँगन !
शहर में रह कर भी,
अपने छोटे से गाँव से बहुत लगाव था…..
हर छुट्टियों में वहाँ आना जाना था ।
अच्छा लगता था
दादी की कहानी सुनना
और
दादाजी के साथ घुड़सवारी करना…..
वह लहराते खेत,
फलों से लदे पेड….
गाय बैल…भैंसें….
कुत्ते, बिल्लीयाँ…
मुर्गे मुर्गियाँ ……
आँगन में आयी हुई चिडियों को
दाना डालना….
वो बुआ की शानदार शादी…
चाचा के लिए लड़की देखने जाना…..
कितनी चहल-पहल थी…
बचपन की यादें तो बहुत मीठी हैं ।
पर कहाँ जान पाए….
चूल्हा चौका करनेवाली,
माँ और चाचियों का दुखदर्द….
लगता था उनके आँसू है,
चूल्हे की गीली लकड़ियों से आते हुए धुएँ की वजह से …..
जब औरत बनी तो अपनी ही समस्याएँ सताने लगीं…..
कहाँ जान पायी उन औरतों की कहानी….
आज बहुत दिनों के बाद
पुरानी तस्वीरें देखी तो उनमें से…
बिना वजह…
महसूस किये कुछ आँसू…..और सिसकियाँ भी……
आज पुरानी तस्वीरें देखी
जिन्दगी के आखिरी दौर में …..
© प्रभा सोनवणे,
“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011
मोबाईल-९२७०७२९५०३, email- [email protected]
आपकी बचपनकी माझे बहुत अच्छी लगी !
धन्यवाद दिदी
यादें…..??
धन्यवाद अरूणजी
धन्यवाद अरूणजी