श्री जगत सिंह बिष्ट

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री जगत सिंह बिष्ट जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ हरिशंकर परसाई से पहली मुलाकात: अंग्रेज़ी में उनके दुर्लभ दस्तख़त।) 

☆  दस्तावेज़ # 14 – हरिशंकर परसाई से पहली मुलाकात: अंग्रेज़ी में उनके दुर्लभ दस्तख़त ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

जब मैं श्रद्धेय हरिशंकर परसाई से पहली बार मिला तब मैं अबोध था। मुझे नहीं मालूम था कि मैं जिससे मिल रहा हूं वो वास्तव में कौन है?

यूं तो परसाई ने 1947 से ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया था लेकिन लगातार स्वतंत्र लेखन 1960 से किया। उन्होंने स्तंभ लेखन की शुरुआत जबलपुर से प्रकाशित ‘प्रहरी’ में की। इसमें वे अघोर भैरव के नाम से ‘नर्मदा के तट से’ स्तंभ लिखते थे।

‘वसुधा’ के संपादक के रूप में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी अपने मित्र मुक्तिबोध से ‘एक साहित्यिक की डायरी’ लिखवाना। ‘सारिका’ के ‘कबीरा खड़ा बाज़ार में’ स्तंभ के अंतर्गत, उनकी कलम से देश-विदेश की जानी-मानी हस्तियों के साथ कबीर का काल्पनिक साक्षात्कार पाठकों में बहुत लोकप्रिय हुआ। ‘सुनो भई साधो’ और ‘ये माजरा क्या है’ स्तंभ ‘नवीन दुनिया’ और ‘जनयुग’ में लंबे समय तक प्रकाशित होते रहे।

ये बात 1972 की है। मेरा कॉलेज में पहला साल पूरा हो रहा था। मुझे पता चला कि मॉस्को में पैट्रिस लुमुंबा पीपल्स यूनिवर्सिटी है। इसमें अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप के छात्र पढ़ने आते हैं। प्रतिभाशाली छात्रों को वजीफा भी दिया जाता है। मैंने सोचा कि क्यों न आवेदन भेजकर देखा जाए। किसी ने कहा कि भारत-सोवियत सांस्कृतिक संघ के सदस्य बन जाओ तो एडमिशन में प्राथमिकता मिलेगी। मैंने सदस्यता ली और सर्टिफिकेट पर दस्तख़त करवाने के लिए परसाई जी के नेपियर टाउन, जबलपुर स्थित आवास पर गया। वे भारत-सोवियत सांस्कृतिक संघ की मध्यप्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय परिषद के सदस्य थे।

उन्होंने जिस सर्टिफिकेट पर दस्तख़त किए, उसकी फोटो इस संस्मरण के साथ प्रस्तुत है। इसमें उन्होंने अंग्रेजी में दस्तख़त किए हैं जो पचास साल बाद दुर्लभ लगते हैं। दस्तख़त के नीचे, उन्होंने अपनी हस्तलिपि में अंग्रेज़ी में लिखा है – वाइस प्रेसिडेंट एम पी आई एस सी यू एस एंड मेंबर नेशनल काउंसिल

संयोग देखिए, लगभग इन्हीं दिनों एक ज्योतिषाचार्य ने मेरी जन्मकुंडली देखकर, मेरे पिताजी को बताया – बालक का विदेश जाने का योग है। वहां जाकर विदेशी कन्या से विवाह का भी योग है। ये वहीं का होकर रह जाएगा और अपनों को भुला देगा।

बस, फिर क्या था। दिल के अरमां, आंसुओं में बह गए। एक आज्ञाकारी पुत्र और कर भी क्या सकता था।

अपने अंतिम समय में पिताजी उत्तराखंड में स्थित पैतृक गांव चले गए थे। माताजी ने हमें बताया कि अंत तक पिताजी को एक ही अफसोस रहा – मैंने जगत को पढ़ाई के लिए मॉस्को नहीं जाने दिया!

कुछ वर्षों बाद, मैंने परसाई को पढ़ना शुरू किया तो जाना कि वो कौन हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनसे अनेक बार मिलने का मौका मिला, मैंने उनको करीब से देखा-समझा, और मुझे उनका आशीर्वाद मिला।

‘हँसते हैं, रोते हैं’ की भूमिका में हरिशंकर परसाई ने लिखा –

एक दिन, एक आदमी आकर वहां खड़ा हो गया और बोला, “ भैया, दुनिया में दो ही तरह के आदमी होते हैं – हँसने वाले और रोने वाले!”

मैंने कहा, “और जो न हँसते हैं, न रोते हैं?”

वह बोला, “वे आदमी थोड़े ही हैं।”

मैं बोला, “उन्हें लोग देवता कहते हैं।”

वह बोला, “देवता होते होंगे तो हों, मगर आदमी नहीं होते।”

♥♥♥♥

© जगत सिंह बिष्ट

Laughter Yoga Master Trainer

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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